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भगवती सूत्र - ग. ८ उ. २ योग उपयोगादि में ज्ञान अज्ञान
अज्ञानी भेद नहीं होना ।
योग द्वार--सयोगी जीव, सकायिक जीवों के समान है । उनमें पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। इसी प्रकार मन योगी, वचन योगी और काय योगी जीवों के विषय में भी जानना चाहिये । क्योंकि केवली में भी मनयोगादि होते हैं । मिथ्यादृष्टि जीवों में तीन अज्ञान भजना से होते हैं। अयोगी जावों में एक केवलज्ञान ही होता है ।
लेश्या द्वार - सलेशी जीवों का वर्णन सकायिक जीवों के समान है। उनमें पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। क्योंकि केवली में भी शुक्ल लेश्या होने के . कारण वे सलेशी हैं । कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या और पद्म लेश्या वाले जीवों का कथन, सेन्द्रिय जीवों के समान है। उनमें चार ज्ञान, तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं । शुक्ल लेश्या वाले जीवों का कथन सलेशी जीवों के समान है । अ जीवों में एक केवलज्ञान ही होता है ।
कषाय द्वार - सकषायी, क्रोध कषायी, मान कषायी, माया कषायी और लोभ कषायी जीवों का कथन, सेन्द्रिय जीवों के समान है। उनमें चार ज्ञान (केवलज्ञान के सिवाय ) और तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। अकषायी जीवों में पांच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं । अकषायी, छद्मस्थ वीतराग और केवली होते हैं । उनमें से छदमस्थ वीतराग में पहले के चार ज्ञान भजना से पाये जाते हैं और केवली में एक केवलज्ञान ही पाया जाता है ।
वेद द्वार-संवेदक का कथन, सेन्द्रिय के समान है । उनमें चार ज्ञान ( केवलज्ञान के सिवाय) और तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं । अवेदक- वेद रहित जीवों का कथन अकपायी के समान है । उनमें पांच ज्ञान भजना से पाये जाते | क्योंकि 'अनिवृत्ति बादर' नामक नौवें गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान तक के जीव अवेदक होते हैं। उनमें से बारहवें गुणस्थान तक के जीव छद्यस्थ होते हैं और उनमें चार ज्ञान भजना से पाये जाते हैं। तेरहवें चौदहवें गुणस्थानवर्ती अवेदक, केवली होते हैं और उनमें एक केवलज्ञान पाया जाता है ।
आहारक द्वार - आहारक जीवों का कथन सकषायी जीवों के समान है । कषाय जीवों में चार ज्ञान और तीन अज्ञान कहे गये हैं, परन्तु आहारक जीवों में केवलज्ञान भी होता है । क्योंकि केवलज्ञानी आहारक भी होते हैं । अनाहारक जीवों में मन:पर्यय ज्ञान के सिवाय चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से पाये जाते है । विग्रह गति, केवलीसमुद्घात और अयोगी दशा में जीव अनाहारक होते हैं। शेष अवस्था में जीव आहारक होते हैं । मन:पर्ययज्ञान, आहारक जीवों को ही होता है। अनाहारक जीवो को पहले के
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