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भगवती सूत्र - श. ८ उ. २ योग उपयोगादि में ज्ञान अज्ञान
९९ उत्तर - हे गौतम! वे भी सेन्द्रिय जीवों (सूत्र ३५ ) की तरह हैं । इसी प्रकार स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी जीवों के विषय में भी जानना चाहिये । अवेदक जीवों का वर्णन अकषायी जीवों (सूत्र ९८ ) के समान है । १०० प्रश्न - हे भगवन् ! आहारक जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ?
१०० उत्तर - हे गौतम! आहारक जीव, सकषायी जीवों ( सूत्र ९७ ) के समान है । परन्तु इतनी विशेषता है कि उनमें केवलज्ञान भी पाया जाता है ।
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१०१ प्रश्न - हे भगवन् ! अनाहारक जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ?
१०१ उत्तर - हे गौतम! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी । उनमें चार ज्ञान ( मन:पर्यय के सिवाय) और तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं ।
विवेचन — उपयोग द्वार - आकार का अर्थ है- ' विशेषता सहित बोध होना' अर्थात् विशेष ग्राहक को 'साकार उपयोग' कहते हैं। साकारोपयोग वाले जीव ज्ञानी और अज्ञानी दोनों तरह के होते हैं । उनमें से ज्ञानी जीवों में पांच ज्ञान भजना से होते हैं, अर्थात् कुछ जीवों में दो, कुछ जीवों में तीन, कुछ जीवों में चार और कुछ जीवों में एक केवलज्ञान होता है । इनका कथन ज्ञान-लब्धि की अपेक्षा है। उपयोग की अपेक्षा तो एक समय में एक हीं ज्ञान अथवा एक ही अज्ञान होता है। अज्ञानी जीवों में तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। अभिविधिक (मति) ज्ञानादि साकारोपयोग के भेद हैं । आभिनिबोधिक मदि साकारोपयोग वाले जीवों में ज्ञान, अज्ञान आदि का कथन ऊपर किया गया है। इनका वर्णन तत्तद् लब्धि वाले जीवों के समान जानना चाहिये ।
जिस ज्ञान में आकार अर्थात् जाति, गुण, क्रिया आदि स्वरूप विशेष का प्रतिभास (बोध) न हो, उसे 'अनाकारोपयोग' (दर्शनोपयोग ) कहते हैं। अनाकारोपयोग वाले जीव ज्ञानी और अज्ञांनी दोनों प्रकार के होते हैं । ज्ञानी जीवों में लब्धि की अपेक्षा पांच ज्ञान भजना से और अज्ञानी जीवों में तीन अज्ञात भजना से पाये जाते हैं। अनाकारोपयोग वालों की तरह चक्षु दर्शन और अचक्षुदर्शन, अनाकारोपयोग वालों के विषय में भी जानना चाहिये । किन्तु चक्षुदर्शन और अचक्षु-दर्शन वाले जीव केवली नहीं होते। इसलिये उनमें चार ज्ञान तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं ।
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अवधिदर्शन अनाकारोपयोग वाले जीव, ज्ञानी और अज्ञानी दोनों तरह के होते हैं। क्योंकि दर्शन का विषय सामान्य है । सामान्य अभिन्नरूप होने से दर्शन में ज्ञानी और
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