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भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ ज्ञान दर्शनादि लब्धि
हारिक और आनुपारिवारिक साधु आलोचना प्रत्याख्यान आदि करते हैं। पारिवारिक साध ग्रीष्म ऋतु में जघन्य एक उपवास, मध्यम दो उपवास और उत्कृष्ट तीन उपवास का तप करते हैं । शिशिर काल में जघन्य बेला, मध्यम तेला और उत्कृष्ट चोला का तप करते हैं । वर्षाकाल में जघन्य तेला, मध्यम चोला और उत्कृष्ट पचोला तप करते हैं । ये पारण में आयंबिल करते हैं । शेष चार आनुपारिहारिक और कल्पस्थित (गुरु रूप में स्थित वाच नाचार्य) ये पांच साधु, सदा आयंबिल करते हैं। इस प्रकार पारिहारिक साधु छह माम तक तप करते हैं । छह मास तक नप कर लेने के बाद वे आनुपारिहारिक अर्थात वैयावृत्य करने वाले हो जाते हैं और वैयावृत्य करने वाले (आनुपारिहारिक) साधु, पारिहारिक बन जाते हैं अर्थात् तप करने लग जाते हैं। यह क्रम भी छह मास तक तक पूर्ववत् चलता है। इस प्रकार आठ साधुओं के तप कर लेने पर उनमें से एक गुरुपद पर स्थापित किया जाता है और गंष सात साधु वैयावृत्य करते हैं और गुरुपद पर रहा हुआ साधु, तप करना प्रारम्भ करता है। यह भी छह मास तक तप करता है । इस प्रकार अठारह माम में यह परिहार तप का कल्प पूरा होता है । परिहार तप पूर्ण होने पर वे साधु, या तो इमी कल्प को पुनः प्रारम्भ करते हैं, या जिनकल्प धारण कर लेते हैं अथवा पुनः गच्छ में आ जाते हैं । यह चारित्र, छेदो. पस्थापनीय चारित्र वालों के ही होता है, दूसरों के नहीं। .
निविश्यमानक और निविष्टकायिक के भेद से परिहारविशुद्धि चारित्र दो प्रकार का
तप करने वाले पारिहारिक साधु-निविश्यमानक' कहलाते हैं। उनका चारित्र 'निविश्यमानक परिहार-विशुद्धि चारित्र' कहलाता है । तप करके वैयावृत्य करने वाले आनुपारिहारिक साधु तथा तप करने के बाद गुरुपद पर रहा साधु-निविष्टकायिक' कहलाता है । इनका चारित्र 'निविष्ट-कायिक परिहार-विशुद्धि चारित्र' कहलाता है ।
___ जघन्य नौवें पूर्व की तीसरी आचार वस्तु तक और उत्कृष्ट किञ्चिन्यून दस पूर्व तक का ज्ञान, सूत्र और अर्थ रूप से जिन्हें हो तथा जिनके द्रव्यादि का अभिग्रह हो और रत्नावली आदि तप किये हुए हों, वे ही परिहार तप अंगीकार कर सकते हैं । इससे कम ज्ञान वाला, परिहार तप अंगीकार नहीं कर सकता और जिसके दस पूर्व पूरे हो गये हों, उनको भी परिहार-विशुद्धि तप करने की आवश्यता नहीं रहती।
(४) सूक्ष्मसम्पराय चारित्र-सम्पराय का अर्थ है-'कषाय' । जिस चारित्र में सूक्ष्म सम्पराय अर्थात् मंज्वलन लोभ का सूक्ष्म अंश रहता है, उस-'सूक्ष्मसम्पराय चारित्र
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