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भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ ज्ञान दर्शनादि लब्धि ...
विभंगणाणलद्धीयाणं तिणि अण्णाणाई णियमा । तस्स अलद्धीयाणं पंच णाणाइं भयणाए, दो अण्णाणाइं णियमा ।
कठिन शब्दार्थ-अत्थेगइया-कुछ, अलद्धिया-अप्राप्ति वाले।
भावार्थ-६७ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञानलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ?
६७ उत्तर-हे गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें से कितने ही दो ज्ञान वाले होते हैं । इस प्रकार उनमें पांच ज्ञान भजना से पाये जाते हैं।
__६८ प्रश्न-हे भगवन् ! ज्ञानलब्धि रहित जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ?
___६८ उत्तर-हे गौतम ! वे ज्ञानी नहीं, अज्ञानी है । उनमें से कितने ही दो अज्ञान वाले होते हैं और कितने ही जीव तीन अज्ञान वाले होते हैं। इस प्रकार उनमें तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं।
६९ प्रश्न-हे भगवन् ! आभिनिबोधिक ज्ञान-लब्धि वाले जीव ज्ञानी है, या अज्ञानी ?
६९ उत्तर-हे गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें से कितने ही जीव दो ज्ञान वाले होते हैं, कितने ही तीन ज्ञान वाले और कितनेक चार ज्ञान वाले होते हैं। इस तरह उनमें चार ज्ञान भजना से पाये जाते है।
प्रश्न-हे भगवन् ! आभिनिबोधिक ज्ञान-लब्धि रहित जीव, ज्ञानी है, या अज्ञानी ?
उत्तर-हे गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी । जो ज्ञानी हैं, वे नियम से एक केवलज्ञान वाले है और जो अज्ञानी हैं, उनमें कितने ही दो अज्ञान वाले हैं और कितनेक तीन अज्ञान वाले हैं। अर्थात् उनमें तीन अज्ञान मजना से पाये जाते हैं। इस प्रकार श्रुतज्ञान लब्धिवाले जीवों का कथन आभिनिबोधिक ज्ञान लब्धिवाले जीवों के समान कहना चाहिये और श्रुतज्ञान-लब्धि रहित जीवों का कथन आमिनिबोधिक ज्ञान-लब्धि रहित जीवों के समान
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