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- भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ ज्ञान दर्शनादि लब्धि ...
उनका कथन निरयगतिक जीवों के समान जानना चाहिये । अर्थात् वे नियम से तीन ज्ञान वाले या भजना से तीन अज्ञान वाले होते हैं, शेष कथन ऊपर आ चुका है।
७ भवसिद्धिक द्वार-भवसिद्धिक (भव्य) जीव सकायिक जीवों के समान पांच ज्ञान वाले अथवा तीन अज्ञान वाले भजना से होते हैं । अर्थात् सम्यग्दृष्टि जीवों में पांच ज्ञान की भजना है और मिथ्यादृष्टि जीवों में तीन अज्ञान की भजना है। ...
- अभवसिद्धिक जीवों में तीन अज्ञान की भजना है, उनमें ज्ञान नहीं होता। क्योंकि वे सदा मिथ्यादृष्टि ही रहते हैं।
८ संज्ञी द्वार-संज्ञी जीवों का कथन सइन्द्रिय जीवों के समान है। अर्थात् उनमें चार जान अथवा तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं । असंज्ञी जीवों का कथन बंइन्द्रिय जीवों के समान है अर्थात् अपर्याप्त अवस्था में उनमें सास्वादन सम्यग्दर्शन का सम्भव होने से दो जान भी पाये जाते हैं । पर्याप्त अवस्था में तो उनमें नियम से दो अज्ञान ही होते हैं । . इससे आगे ज्ञानादि लब्धि द्वार का कथन किया जाता है।
ज्ञान-दर्शनादि लब्धि .
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५९ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! लद्धी पण्णता ?
५९ उत्तर-गोयमा ! दसविहा लद्धी पण्णत्ता, तं जहा-१णाणलद्धी, २ सणलद्धी, ३ चरित्तलद्धी, ४ चरित्ताचरित्तलद्धी, ५ दाणलद्धी, ६ लाभलद्धी, ७ भोगलद्धी, ८ उवभोगलद्धी, ९ वीरियलद्धी१० इंदियलद्धी।
६० प्रश्न-णाणलद्धी णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? _
६० उत्तर-गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-आभिणिवोहियणाणलद्धी, जाव केवलणाणलद्धी ।
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