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भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ ज्ञान अज्ञान की भजना के वीस द्वार
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दो अज्ञान होते हैं । सकायिक जीवों की तरह वादर जीव केवलज्ञानी भी होते हैं । अतः सकायिक की तरह उनमें पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं। ... ५ पर्याप्त द्वार-पर्याप्त जीव केवलज्ञानी भी होते हैं । इसलिये उनमें सकायिक जीवों की तरह पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं । पर्याप्त नरयिकों में तीन ज्ञान या तीन अनान नियमा होते हैं। क्योकि असंजी जीवों से आये हुए नरयिकों में अपर्याप्त अवस्था में विमंगज्ञान का अभाव होता है, किन्तु पर्याप्त अवस्था में तो उन्हें तीन अज्ञान नियम से होते हैं। इसी प्रकार भवन पति और वाणव्यन्तर देवों में भी जानना चाहिये । पर्याप्त विकलेन्द्रियों में नियम से दो अज्ञान होते हैं । पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च जीवों में कितने ही जीवों को अवधिज्ञान होता है और कितने ही जीवों को नहीं होता । तथा कितने ही जीवों को विमंगज्ञान होता है और कितने ही जीवों को नहीं होता। इसलिये उनमें तीन ज्ञान तीन अजान भजना से पाये जाते हैं ।
नरयिक और भवनपति देवों के अपर्याप्त में तीन ज्ञान नियम से और तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं । अपर्याप्त वेइन्द्रिय आदि जीवों में से कितने ही जीवों को सास्वादन सम्यग्दर्शन का सम्भव होने से उनमें दो ज्ञान पाये जाते हैं, शेष में दो अज्ञान पाये जाते हैं । . सम्यग्दृष्टि मनुष्यों में अपर्याप्त अवस्था में तीर्थङ्कर आदि के समान अवधिज्ञान होना सम्भव है । इसलिये उनमें तीन ज्ञान भजना से पाये जाते हैं । मिथ्यादृष्टि जीवों को अपर्याप्त अवस्था में विभंगज्ञान नहीं होता । इसलिये उनमें नियम से दो अज्ञान पाये जाते हैं । अपर्याप्त वाणव्यन्तर देव, नरयिकों के समान नियम से तीन ज्ञान वाले, दो अज्ञान वाले या तीन अज्ञान वाले होते हैं । क्योंकि असंज्ञी जीवों में से आकर जो उनमें उत्पन्न होता है, उस में अपर्याप्त अवस्था में विभंगज्ञान का अभाव होता है, शेष में अवधिज्ञान अथवा विभंगज्ञान नियम से होता है।
ज्योतिषी और वैमानिक देवों में संज्ञी जीवों में से ही आकर उत्पन्न होते हैं, इस. लिये उनमें अपर्याप्त अवस्था में भी भवप्रत्यय अवधिज्ञान अथवा विभंगज्ञान अवश्य होता है । इसलिये उनमें नियम से तीन ज्ञान, या तीन अज्ञान होते हैं।
नोपर्याप्त नोअपर्याप्त अर्थात् पर्याप्त और अपर्याप्त भाव से रहित जीव सिद्ध होते हैं । क्योंकि वे अपर्याप्त और नाम कर्म से रहित हैं। उनमें एक मात्र केवलज्ञान पाया जाता है । . . ६ भवस्थ द्वार-निरयभवस्थ का अर्थ है-नरकगति में उत्पत्ति स्थान को प्राप्त हुए।
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