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________________ १३१४ भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ ज्ञान अज्ञान की भजना के बीस द्वार ४९ उत्तर-हे गौतम ! उनमें तीन ज्ञान भजना से और दो अज्ञान नियमा होते है । वाणव्यन्तरों का कथन नरयिक (सूत्र ४७) जीवों की तरह जानना चाहिये । अपर्याप्त ज्योतिषी और वैमानिकों में तीन ज्ञान और तीन अज्ञान नियमा होते है। ५० प्रश्न-हे भगवन् ! नोपर्याप्त नोअपर्याप्त जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ? ५० उत्तर-हे गौतम ! उनका कथन सिद्ध जीवों के समान (सूत्र ३०) जानना चाहिये। ५१ प्रश्न-णिरयभवत्था णं भंते ! जीवा किं णाणी अण्णाणी ? ५१ उत्तर-जहा णिरयगइया । ५२ प्रश्न-तिरयभवत्था णं भंते ! जीवा किं णाणी अण्णाणी ? ५२ उत्तर-तिणि णाणा, तिण्णि अण्णाणा, भयणाए । ५३ प्रश्न-मणुस्सभवत्था ण ? ५३ उत्तर-जहा सकाइया । ५४ प्रश्न-देवभवत्था णं भंते !० ? ५४ उत्तर-जहा णिरयभवत्था । अभवत्था जहा सिद्धा। कठिन शब्दार्थ-तिरयमवत्था--तियंच भव में रहे हुए। भावार्थ-५१ प्रश्न-हे भगवन् ! निरय-भवस्थ-नरकगति में रहे हुए जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ? ५१ उत्तर-हे गौतम ! इनका कथन निरयगतिक जीवों (सू. ३१) के समान जानना चाहिये। ५२ प्रश्न-हे भगवन् ! तिर्यग्भवस्थ जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ? ५२ उत्तर-हे गौतम ! उनके तीन ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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