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________________ २०८८ भगवती सूत्र - श. ७ उ. १. कर्म रहित जीव की गति णिरुवहयं आणुपुवीए परिक्रम्मेमाणे परिकम्मेमाणे दव्भेहि य कुहिय वेढे, वेढेत्ता, अट्ठहिं मट्टियालेवेहिं लिंपइ लिंपित्ता उन्हे दलयह, भूइं भूइं सुक्कं समाणं अत्थाहमतारमपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा, सेणूं गोयमा ! से तुंबे तेसिं अटुण्हं मट्टियालेवाणं गुरुयत्ताए, भारियत्ताए, गुस्संभारियत्ताए सलिलतलमइवइत्ता अहे धरणितलपड़ट्टाणे भवइ ? हंता भवइ । अहे णं से तुंबे तेसिं अट्टहं मट्टियावाणं परिक्खएणं धरणितलमइवइत्ता उपिं सलिलतलपड़ट्टाणे भवइ ? हंता भवइ । एवं खलु गोयमा ! णिस्संगयाए, णिरं गणयाए, गइपरिणामेणं अकम्मरस गई पण्णाय । कठिन शब्दार्थ- पण्णा इ - स्वीकृत है, णिस्संगयाए - निःसंगता से, रिंगणयाएनीरागता से, रिघणयाए - निरिन्धनता से अर्थात् कर्मरूप ईन्धन से रहित होने से, पुण्वओगे - पूर्व प्रयोग से, णिच्छिहुं-छिद्र रहित, णिरुवहयं जो टुटा हुआ नहीं हो, परिकम्मेमाणे - संस्कार करके, वेढेइ-बाँधे, मट्टियालेवेहि मिट्टी के लेप से, उण्हे दलयइ - धूप में रखकर सुखावे, भूइं भू-भूयः भूयः - बारम्बार, अत्याहमता रमपोरिसिघंसि उदगंसि - अथाह और तिरा नहीं जा सके ऐसे पुरुष प्रमाण से भी अधिक गहरे पानी में, पक्खिवेज्जा - प्रक्षेप करे, सलिलतलमइबइत्ता-पानी के ऊपर के तल को छोड़कर, अहे धरणितलपट्ठाणे-नीचे पृथ्वी तल पर बैठे । भावार्थ - १० प्रश्न - हे भगवन् ! क्या कर्म रहित जीव की गति होती है ? १० उत्तर - हां, गौतम ! कर्म रहित जीव की गति होती है । Jain Education International ११ प्रश्न - हे भगवन् ! कर्म रहित जीव की गति किस प्रकार होती है ? ११ उत्तर - हे गौतम ! निःसंगपन से, नीरागपन से, गतिपरिणाम से, बन्धन का छेद होने से, निरिन्धन होने से अर्थात् कर्मरूपी ईन्धन से मुक्त होने से और पूर्व प्रयोग से कर्म रहित जीव की गति होती है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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