SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती पुत्र श. ७ उ. १ कर्म राहत जीब की गति करता है । फिर अपूर्वकरण के द्वारा ग्रन्थिभेद करता है, फिर अनिवृत्तिकरण को प्राप्त कर सम्यक्त्व लाभ करता है। इसके बाद सिद्ध होता है, यावत् समस्त दुःखों का अन्त करता है । 'दानविशेष' से 'बोधिगुण' की प्राप्ति होती है । यह बात दूसरी जगह भी कही गई है । यथा अनुकंप अकामणिज्जर, बालतवे दाणविणए' अर्थ - अनुकम्पा, अकामनिर्जरा, बालतप, दान, विनय आदि से सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है । यथा " १०८७ केइ तेणेव भवेण निग्बुया, सव्वकम्मओ मुक्का । केइ तइयभवेणं, सिज्झिस्संति जिणसगासे ॥ अर्थ-कितनेक जीव तो उसी भव में सभी कर्मों से रहित होकर मुक्त हो जाते हैं और कितनेक जीव, महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर तीसरे भव में सिद्ध हो जाते हैं । कर्म रहित जीव की गति Jain Education International १० प्रश्न - अत्थि णं भंते ! अकम्मस्स गई पण्णायइ ? १० उत्तर - हंता, अस्थि । १ ११ प्रश्न - कहं णं भंते ! अम्मस्स गई पण्णाय ? ११ उत्तर - गोयमा ! णिस्संगयाए, णिरंगणयाए, गहपरिणामेणं, बंधणळेयणयाए, णिरिंधणयाए, पुव्वप्पओगेणं अकम्मस्स गई पण्णाय । १२ प्रश्न - कहं णं भंते ! णिस्संगयाए, णिरंगणयाए, गहपरिणामेणं अकम्मर गई पण्णाय ? १२ उत्तर - से जहाणामए केई पुरिसे सुक्कं तुंबं णिच्छिड्ड For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy