SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३१२ भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ ज्ञान अज्ञान की भजना के बीस द्वार जहा मकाइया । वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा णेरइया । ४६ प्रश्न-अपजत्ता णं भंते ! जीवा किं णाणी, अण्णाणी ? ४६ उत्तर-तिण्णि णाणा, तिण्णि अण्णाणा भयणाए । ४७ प्रश्न-अपजत्ता णं भंते ! णेरड्या किं णाणी, अण्णाणी ? ४७ उत्तर-तिणि णाणा णियमा, तिणि अण्णाणा भय. णाए । एवं जाव थणियकुमारा । पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया जहा एगिदिया। भावार्थ-४३ प्रश्न-हे भगवन् ! पर्याप्त जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं? ४३ उत्तर--हे गौतम ! इनका कथन सकायिक जीवों के समान जानना चाहिये। ४४ प्रश्न-हे भगवन् ! पर्याप्त नरयिक जीव ज्ञानी है; या अज्ञानी है ? ४४ उत्तर-हे गौतम ! इनको नियमा तीन ज्ञान या तीन अज्ञान होते हैं। नरयिक जीवों के कथन के समान यावत् स्तनितकुमार देवों तक जानना चाहिये । पृथ्वीकायिक जीवों का कथन और बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय तक के जीवों का कथन एकेन्द्रिय (सू. ३६ में कथित) जीवों के समान जानना चाहिये। ४५ प्रश्न-हे भगवन् ! पर्याप्त पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं ? ४५ उत्तर-हे गौतम ! इनके तीन ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। मनुष्यों का कथन सकायिक (सू. ३८) की तरह जानना चाहिये । बाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिकों का कथन नरयिक जीवों (सु. २५) की तरह जानना चाहिए। ४६ प्रश्न हे भगवन् ! अपर्याप्त जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy