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________________ १३०४ भगवती सूत्र - उ. २ ज्ञानो अज्ञानी होते हैं । इन की स्थिति इस प्रकार बतलाई गई है । उग्गहे इक्कसमइए, अंतोमुहुत्तिया ईहा । अंतोमुहुत्तिए अवाए, धारणा संखेज्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं । अर्थ - अवग्रह की स्थिति एक समय की है। ईहा की अन्तर्मुहूर्त की अवाय की अन्तर्मुहूर्त की और धारणा की स्थिति संख्यात वर्ष की आयुष्य वालों की अपेक्षा संख्यात काल की है और असंख्यात वर्ष की आयुष्य वालों की अपेक्षा असंख्यात काल की है। Jain Education International श्रुतज्ञान के अक्षरश्रुत, अनक्षरश्रुत आदि चौदह भेद हैं । अवधिज्ञान के भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय - ये दो भेद हैं । मनः पर्यवज्ञान के ऋजुमति और विपुलमति — ये दो भेद हैं । केवलज्ञान का दूसरा कोई भेद नहीं है । यह एक ही भेद वाला है । मतिज्ञान से विपरीत ज्ञान को 'मतिअज्ञान' कहते हैं । अर्थात् अविशेषित मति, सम्यग् - दृष्टि के लिये मतिज्ञान है और मिथ्यादृष्टि के लिये मतिअज्ञान है । इसी तरह अविशेषित श्रुत, सम्यग्दृष्टि के लिये श्रुतज्ञान है और मिथ्यादृष्टि के लिये 'श्रुतअज्ञान' है । अवधिज्ञान से विपरीत ज्ञान को 'विभंगज्ञान' कहते हैं । ज्ञान में अवग्रह आदि के एकार्थक नाम कहे गये हैं, वे यहाँ अज्ञान के प्रकरण में नहीं कहने चाहिये । ज्ञानी अज्ञानी २५ प्रश्न - रइया णं भंते! किं णाणी, अण्णाणी ? २५ उत्तर - गोयमा ! णाणी वि, अण्णाणी वि । जे गाणी ते णियमा तिष्णाणी, तं जहा - आभिणिबोहियणाणी, सुयणाणी, ओहिणाणी | जे अण्णाणी ते अत्थेगइया दुअण्णाणी, अत्थेगइया तिअण्णाणी; एवं तिणि अण्णाणाणि भयणाए । २६ प्रश्न - असुरकुमारा णं भंते ! किं णाणी, अण्णाणी ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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