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________________ भगवती सूत्र - श. ८ उ. २ ज्ञान के भेद अवग्रह - इन्द्रिय और पदार्थों के योग्य स्थान में रहने पर सामान्य प्रतिभास रूप दर्शन के बाद होने वाला, अवान्तर सत्ता सहित वस्तु के सर्व प्रथम ज्ञान को 'अवग्रह' कहते हैं । जैसे -दूर से किसी चीज का ज्ञान होना । 1 - ईहा- अवग्रह से जाने हुए पदार्थ के विषय में उत्पन्न हुए संशय को दूर करते हुए विशेष की जिज्ञासा को 'ईहा' कहते हैं। जैसे- अवग्रह से किसी दूरस्थ वस्तु का ज्ञान होने पर संशय होता है कि 'यह दूरस्थ वस्तु मनुष्य है, या स्थाणु ।' ईहा ज्ञानवान् व्यक्ति, विशेष धर्म विषयक विचारणा द्वारा इस संशय को दूर करता है और यह जान लेता हैं कि यह मनुष्य होना चाहिये । यह ज्ञान, दोनों पक्षों में रहने वाले संशय को दूर कर एक ओर झुकता है । परन्तु यह इतना कमजोर होता है कि ज्ञाता को इससे पूर्ण निश्चय नही होता और उसको तद्विषयक निश्चयात्मक ज्ञान की आकांक्षा वनी ही रहती है । १३०३ अवाय - ईहा से जाने हुए पदार्थों में ' यह वही है, अन्य नहीं हैं," ऐसे निश्चयात्मक ज्ञान को 'अवाय' कहते हैं । जैसे - यह मनुष्य है, स्थाणु (ठूंठ ) नहीं । धारणा — अवाय से जाना हुआ पदार्थों का ज्ञान, इतना दृढ़ हो जाय कि कालान्तर में भी उसका विस्मरण न हो, तो उसे 'धारणा' कहते हैं । अवग्रह के दो भेद हैं । १ अर्थावग्रह और २ व्यञ्जनावग्रह | अर्थावग्रह-पदार्थ के अव्यक्त ज्ञान को अर्थावग्रह कहते हैं । अर्थावग्रह में पदार्थ के वर्ण, गन्ध आदि का अव्यक्त ज्ञान होता है। इसकी स्थिति एक समय की है । Jain Education International व्यञ्जनावग्रह - अर्थावग्रह से पहले होने वाला अत्यन्त अव्यक्त ज्ञान 'व्यञ्जनावग्रह' हैं । तात्पर्य यह है कि इन्द्रियों का पदार्थ के साथ जब सम्बन्ध होता हैं, तब 'किमपीदम्' ( यह कुछ है ) । ऐसा अस्पष्ट ज्ञान होता है । यही ज्ञान अर्थावग्रह है । इससे पहले होने वाला अत्यन्त अस्पष्ट ज्ञान. व्यञ्जनावग्रह कहलाता है। दर्शन के बाद व्यंजनावग्रह होता है । यह चक्षु और मन को छोड़कर शेष चार इन्द्रियों से ही होता है । इसकी जघन्य स्थिति आवलिका के असंख्यातवें भाग की है और उत्कृष्ट 'से नव श्वासोच्छ्वास की है । नन्दीसूत्र में अवग्रह आदि के पांच पांच एकार्थक नाम दिये गये हैं । यथा - अवग्रह के पांच नाम-१ अवग्रहणता, २ उपाधारणता, ३ श्रवणता, ४ अवलम्बनता, ५ मेघा । ईहा के पांच नाम- १ आभोगनता, २ मार्गणता, ३ गवेषणता, ४ चिन्ता, ५ विमर्श । अवाय के पांच नाम- १ आवर्तनता, २ प्रत्यावर्तनता, ३ अवाय, ४ बुद्धि, ५ विज्ञान । धारणा के पांच नाम- १ धरणा, २ धारणा, ३ स्थापना, ४ प्रतिष्ठा, ५ कोष्ठ । ये सब मिलाकर बीस भेद For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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