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________________ १२९४ भगवती सूत्र - -श. ८ उ. २ आशीविष विष हैं, अथवा अपर्याप्त असुरकुमारादि भवनवासी देव कर्म आशीविष है? ११ उत्तर - हे गौतम ! पर्याप्त असुरकुमार भवनवासी देव कर्म- आशीविष नहीं, परन्तु अपर्याप्त असुरकुमार भवनवासी देव कर्म- आशीविष हैं । इस प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक जानना चाहिये । १२ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि वाणव्यन्तर देव कर्म आशीविष हैं, तो क्या पिशाच वाणव्यन्तर देव कर्म-आशीविष हैं इत्यादि प्रश्न ? १२ उत्तर - हे गौतम ! वे सभी अपर्याप्त अवस्था में कर्म - आशीविष हैं । इस प्रकार सभी ज्योतिषी देव भी अपर्याप्त अवस्था में कर्म-आशीविष हैं । १३ प्रश्न - जइ वेमाणियदेवकम्मासीविसे किं कप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीविसे, कप्पाईयवेमाणियदेवकम्मासीविसे ? १३ उत्तर - गोयमा ! कप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीविसे, णो कप्पामाणि देवकम्मासीविसे । १४ प्रश्न - जइ कप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीविसे किं सोहम्मकप्पोवग जाव कम्मासीविसे, जाव अच्चुयकप्पोवग जाव कम्मा - सीविसे ? १४ उत्तर - गोयमा ! सोहम्म कप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीविसे वि, जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीविसे वि णो आणय 9 Jain Education International कपोवग, जाव णो अच्चुयकष्पोव गरेमा णिय देवकम्मासीविसे । १५ प्रश्न - जइ सोहम्मकप्पोवग जाव कम्मासीविसे किं पज्जतसोहम्मक पोवगवेमाणिय, अपज्जत्त-सोहम्म कप्पोवग- वेमाणियदेव For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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