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________________ भगवती सूत्र-श. ८ उ. २ आशीविष १२९३ वि, जाव थणियकुमार जाव कम्मासीविसे कि । ___११ प्रश्न-जइ असुरकुमार जाव कम्मासीविसे, किं पजत्त. असुरकुमार-भवणवासि-देवकम्मासीविसे, अपजत्तअसुरकुमार जाव कम्मासीविसे ? __ ११ उत्तर-गोयमा ! णो पजत्तअसुरकुमार-जाव कम्मासीविसे, अपजत्तअसुरकुमार जाव कम्मासीविसे, एवं जाव थणियकुमाराणं । ___ १२ प्रश्न-जइ वाणमंतरदेवकम्मासीविसे किं पिसायवाणमंतरदेवकम्मासीविसे ? १२ उत्तर-एवं सब्वेसि पि अपजत्तगाणं, जोइसियाणं सव्वेसि अपजत्तगाणं । भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि देव कर्म-आशीविष होते हैं, तो क्या भवनवासी देव कर्म-आशीविष होते हैं, अथवा यावत् वैमानिक देव कर्म-आशीविष होते हैं। ९. उत्तर-हे गौतम ! भवनवासी, वाणव्यस्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देव, ये चारों प्रकार के देव कर्म-आशीविष होते हैं। . १० प्रश्न-हे भगवन् ! यदि भवनवासी देव कर्म-आशीविष होते हैं, तो क्या असुरकुमार भवनवासी देव कर्म आशीविष होते हैं, अथवा यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव कर्म-आशीविष होते हैं ? । १० उत्तर-हे गौतम ! असुरकुमार भवनवासी देव भी कर्म-आशीविष होते हैं, यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव भी कर्म-आशीविष होते हैं। . ११ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव कर्म-आशीविष हैं तो क्या पर्याप्त असुरकुमारादि भवनवासी देव कर्म-आशी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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