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________________ १२९२ भगवती सूत्र - श. ८ उ. २ आशीविष तिर्यंचयोनिक कर्म - आशीविष है ? ७ उत्तर - हे गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें शरीर पद में वैक्रियशरीर के सम्बन्ध में जिस प्रकार कहा है, उसी प्रकार कहना चाहिये । यावत् पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाला गर्भज कर्मभूमिज पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक कर्म - आशीविष होता है, परन्तु अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य बाला यावत् कर्म - आशीविष नहीं होता । ८ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि मनुष्य कर्म - आशीविष है, तो क्या सम्मूच्छिम मनुष्य कर्म - आशीविष है, या गर्भज मनुष्य कर्म-आशीविष है ? ८ उत्तर - हे गौतम! सम्मूच्छिम मनुष्य कर्म-आशीविष नहीं होता, किन्तु गर्भज मनुष्य कर्म आशीविष होता है प्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें शरीर पद में वैक्रिय शरीर के सम्बन्ध में जिस प्रकार जीव के भेद कहे गये है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिये । यावत् पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्य कर्म-आशीविष होते है, परन्तु अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले यावत् कर्म - आशीविष नहीं होते । ९ प्रश्न - जड़ देवकम्मासीविसे किं भवणवासिदेवकम्मासीविसे, जाव वेमाणियदेवकम्मासीविसे ? ९ उत्तर - गोयमा ! भवणवासिदेवकम्मासीविसे, वाणमंतरजोड़सिय-वेमाणियदेवकम्मासीविसे वि । Jain Education International १० प्रश्न- जइ भवणवासिदेवकम्मासीविसे, किं असुरकुमारभवणवासिदेवकम्मासीविसे, जाव थणियकुमार जाव कम्मासीविसे ? १० उत्तर - गोयमा ! असुरकुमार भवणवासिदेवकम्मासीविसे For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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