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भगवती सूत्र - शं. ८ उ. १ चार आदि द्रव्यों के परिणाम
द्रव्य मिश्र परिणत होते हैं और एक द्रव्य विस्त्रसा परिणत होता है । अथवा (१२) दो द्रव्य प्रयोग- परिणत होते हैं, एक मिश्र - परिणत होता है और एक विसा परिणत होता है ।
६८ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि चार द्रव्य प्रयोग- परिणत होते हैं, तो क्या मनः प्रयोग- परिणत होते हैं, या वचन प्रयोग- परिणत होते हैं, या काय प्रयोगपरिणत होते हैं ?
६८ उत्तर - हे गौतम! ये सब पहले की तरह कहना चाहिये। इसी क्रम द्वारा पाँच, छह, सात, आठ, नव, दस, संख्यात, असंख्यात और अनन्त द्रव्यों के द्वि-संयोगी, त्रिक-संयोगी यावत् दस-संयोगी, बारह-संयोगी आदि सभी भंग उपयोग पूर्वक कहना चाहिये। जहां जितने संयोग होते हैं, वहां उतने सभी संयोग कहना चाहिये । ये सभी संयोग नौवें शतक के प्रवेशनक नामक बत्तीसवें उद्देशक में जिस प्रकार आगे कहे जायेंगे, उसी प्रकार उपयोग पूर्वक यहाँ पर भी कहना चाहिये । यावत् असंख्यात और अनन्त द्रव्यों के परिणाम कहना चाहिये, परंतु एक पद अधिक करके कहना चाहिये । यावत् अथवा अनंत द्रव्य परिमण्डल संस्थानपने परिणत होते हैं, यावत् अनंत द्रव्य आयत संस्थानपने परिणत होते हैं।
विवेचन - चार आदि द्रव्यों के परिणाम के विषय में कथन किया जा रहा है। चार द्रव्यों के प्रयोग-परिणत आदि तीन के असंयोगी तीन भंग होते हैं और द्विक संयोगी नग होते हैं । त्रिक संयोगी तीन भंग होते हैं। इस तरह ये सभी पन्द्रह भंग होते हैं। आगे के भंगों के कथन के लिये पूर्वोक्त कथनानुसार संस्थान पर्यन्त यथायोग्य भंग कहना चाहिये । पांच द्रव्यों के असंयोगी तीन भंग होते हैं और द्विक संयोगी वारह भंग होते हैं और त्रिक संयोगी छह भंग होते हैं । इस तरह ये इक्कीस भंग होते हैं ।
इस प्रकार पांच, छह, आदि यावत् अनन्त द्रव्यों के भी यथायोग्य भंग कहन चाहिये। सूत्र के मूलपाठ में ग्यारह संयोगी भंग नहीं बतलाया है। इसका कारण यह कि पूर्वोक्त पदों में ग्यारह संयोगी भंग नहीं बनता ।
नौवें शतक के बत्तीसवें उद्देशक में गांगेय अनगार के प्रवेशनक सम्बन्धी भंग क जावेंगे, तदनुसार यहाँ भी उपयोग लगाकर भंग कहना चाहिये ।
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