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भगवती सूत्र-श. ८ उ. १ परिणामों का अल्प वहुत्व
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परिणामों का अल्प बहुत्व
६९ प्रश्न-एएसिणं भंते ! पोग्गलाणं पओगपरिणयाणं मीमापरिणयाणं, वीसंसापरिणयाण य कयरे कयरेहितोजाव विसेसाहिया वा ?
६९ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा पोग्गला पओगपरिणया, मीसापरिणया अणंतगुणा, वीससापरिणया अणंतगुणा ।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ॐ
॥ अट्ठमसए पढमो उद्देसो समत्तो ॥, भावार्थ-६९ प्रश्न-हे भगवन् ! प्रयोग-परिणत, मिश्र-परिणत और वित्रसापरिणत, इन तीनों प्रकार के पुद्गलों में कौन किस से अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक है ?
६९ उत्तर-हे गौतम ! सब से थोडे पुद्गल प्रयोग-परिणत है, उनसे मिश्रपरिणत पुद्गल अनन्तगुणे है और उनसे विस्रसा-परिणत पुद्गल अनन्त गुणे हैं।
हे भगवन् ! यह इस प्रकार है । हे भगवन् ! यह इस प्रकार है । ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते है।
विवेलन-सबं से थोड़े पुद्गल प्रयोग-परिणत हैं । अर्थात् मन, वचन और कायारूप योगों से परिणत पुद्गल सबसे थोड़े हैं, क्योंकि जीव और पुद्गल का सम्बन्ध अल्पकालीन हैं । प्रयोग-परिणत पुद्गलों से मिश्र-परिणत पुद्गल अनन्त गुण हैं। क्योकि प्रयोग-परिणाम द्वारा कृत आकार को न छोड़ते हुए विस्रसा-परिणाम द्वारा परिणामान्तर को प्राप्त हुए मृतकलेवर आदि अवयवरूप पुद्गल अनन्तानत हैं। विस्रसा-परिणत पुद्गल तो उनसे भी अनन्त गुणे हैं । क्योंकि जीव के द्वारा ग्रहण न किये जा सकने योग्य परमाणु आदि पुद्गल भी अनन्त गुणे हैं।
॥ इति आठवें शतक का प्रथम उद्देशक समाप्त ॥
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