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भगवती सूत्र - श. ८ उ. १ दो द्रव्यों के परिणाम
प्रयोग परिणत होता है । इस प्रकार द्विक संयोगी भांगे करने चाहिये। जहां जितने द्विक संयोगी भांगे होते हैं, वहाँ उतने सभी कहना चाहिये । यावत् सर्वार्थसिद्ध वैमानिक देव पर्यंत कहना चाहिये ।
६२ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि वे दो द्रव्य, मिश्र-परिणत होते हैं, तो क्या वे मनोमिश्र - परिणत होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
६२ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार प्रयोग- परिणत के विषय में कहा उसी प्रकार मिश्र परिणत के सम्बन्ध में भी कहना चाहिये ।
६३ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि दो द्रव्य, विस्रसा परिणत होते हैं, तो क्या वर्णपने परिणत होते हैं, अथवा यावत् संस्थानपने परिणत होते हैं ?
६३ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार पहले कहा है, उसी प्रकार वित्रतापरिणत के विषय में भी कहना चाहिए। यावत् एक द्रव्य, चतुरस्रं संस्थानपने परिणत होता है और दूसरा आयत संस्थानपने परिणत होता है ।
विवेचन - दो द्रव्यों के विषय में प्रयोग- परिणत, मिश्र-परिणत और विस्त्रमा परिणत इन तीन पदों के असंयोगी (एक) तीन भंग होते है और द्विक संयोगो भी तीन भंग होते हैं। इस प्रकार ये छह भंग होते हैं । सत्यमनः प्रयोग- परिणत, मृषामनः प्रयोग- परिणत, सत्य- मूषामनः प्रयोग- परिणत और असत्या मृषामनः प्रयोग- परिणत, इन चार पदों के असंयोगी चार भंग होते हैं और द्विक-संयोगी छह भंग होते हैं। इस प्रकार इनके कुल दस भंग होते हैं । 'आरम्भ सत्यमनः प्रयोग- परिणत' आदि छह पद हैं। इनमें असंयोगी छह भंग होते हैं. और द्विक-संयोगी पन्द्रह भंग होते हैं । ये आरम्भ सत्यमनः प्रयोग-परिणत के कुल इक्कीस भंग होते हैं । इसी प्रकार अनारम्भ सत्यमनः प्रयोग- परिणत आदि पांच पदों के भी प्रत्येक के इक्कीस इक्कीस मंग होते हैं । इस प्रकार सत्यमनः प्रयोग-परिणत के आरम्भ, अनारम्भ आदि छह पदों के साथ कुल एक सौ छब्वीस भंग होते हैं। मृपामनः प्रयोग- परिणत, सत्यमृषामनः प्रयोग-परिणत, और असत्या - मृषामनः प्रयोग- परिणत, इन तीन पदों के आरम्भ आदि छह पदों के साथ प्रत्येक के एक सौ छब्बीस, एक सौ छब्वीस भंग होते हैं । इस प्रकार सत्य- मनः प्रयोग - परिणत के कुल ५०४ भंग होते हैं ।
जिस प्रकार मनःप्रयोग - परिणत के पाँच सो चार भंग कहे गये हैं, उसी प्रकार वचन प्रयोग- परिणत के भी पांच सौ चार भंग होते हैं ।
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