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________________ १०८४ भगवती सूत्र-श. ७ उ. १ श्रमणोपासक के उदार व्रत खणमाणे अण्णयरं तसं पाणं विहिंसेजा, से णं भंते ! तं वयं अइचरइ ? ६ उत्तर-णो इणटे समटे, णो खलु से तस्स अइवायाए आउट्टइ। ... ७ प्रश्न-समणोवासयस्स णं . भंते ! पुव्वामेव वणस्सइसमारंभे पच्चक्खाए, से य पुढविं खणमाणे अण्णयरस्स रुक्खस्स मूलं छिंदेजा, से णं भंते ! तं वयं अइचरइ ? . ७ उत्तर-णो इणटे समढे, णो खलु से तस्स अइवायाए आउट्टइ। कठिन शब्दार्थ-पुवामेव--पहले, खणमाणे--खोदता हुआ, अग्णयरं-दूसरे, वयं अइचरइ--व्रत को अतिचारी करता है, अइवायाए-अतिपात-हिंसा के लिए, आउदृइ-प्रवृत्ति करता है। भावार्थ-६ प्रश्न-हे भगवन् ! जिस श्रमणोपासक को पहले से ही त्रस जीवों के वध का प्रत्याख्यान हो और पृथ्वीकाय के वध का प्रत्याख्यान नहीं हो, उस श्रमणोपासक को पृथ्वी खोदते हुए त्रस जीव की हिंसा हो जाय, तो हे भगवन् ! क्या उसके व्रत में अतिचार लगता है ? ६ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, क्योंकि उसकी प्रवृत्ति उस त्रस जीव की हिंसा करने के लिए नहीं होती। ७ प्रश्न- हे भगवन् ! जिस श्रमणोपासक को पहले से ही वनस्पति के वध का प्रत्याख्यान हो और पृथ्वीकाय के वध का प्रत्याख्यान नहीं हो, तो पृथ्वी को खोदते हुए उसके हाथ से किसी वृक्ष का मूल छिद (कट) जाय, तो क्या उसके व्रत में अतिचार लगता है ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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