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भगवती सूत्र - ८ उ. १ एक द्रव्य परिणाम
३१ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि एक द्रव्य, सत्य-मन प्रयोग-परिणत होता है, तो क्या आरम्भ सत्य-मन प्रयोग- परिणत होता है, अनारम्भ सत्य-मन प्रयोगपरिणत होता है, सारम्भ सत्य-मन प्रयोग-परिणत होता है, असारम्भ सत्यमन प्रयोग-परिणत होता है, समारम्भ सत्य-मन प्रयोग- परिणत होता है, या असमारम्भ सत्य-मन प्रयोग- परिणत होता है ?
३१ उत्तर - हे गौतम ! वह आरम्भ सत्य-मन प्रयोग-परिणत होता है, अथवा यावत् असमारम्भ सत्य मन प्रयोग- परिणत होता है ।
३२ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि एक द्रव्य, मृषा मन प्रयोग-परिणत होता है, तो क्या आरंभमृषा-मन प्रयोग- परिणत होता है, यावत् असमारम्भ- मृषा मन प्रयोग- परिणत होता है ?
३२ उत्तर - हे गौतम ! जिस प्रकार सत्य मन प्रयोग- परिणत के विषय में कहा है, उसी प्रकार मृषा-मन प्रयोग परिणत के विषय में भी कहना चाहिये, तथा सत्य- मृषा मन प्रयोग- परिणत के विषय में एवं असत्या मृषा-मन प्रयोगपरिणत के विषय में भी कहना चाहिये ।
३३ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि एक द्रव्य, वचन प्रयोग- परिणत होता है, तो क्या सत्य वचन प्रयोग-परिणत होता है, मृषा-वचन प्रयोग परिणत होता है, सत्य मृषा-वचन प्रयोग- परिणत होता है, या असत्यामृषा वचन प्रयोगपरिणत होता है ?
३३ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार मन प्रयोग परिणत के विषय में कहा है, उसी प्रकार वचन प्रयोग- परिणत के विषय में भी कहना चाहिये । यावत् वह असमारम्भ वचन प्रयोग- परिणत होता है -- यहाँ तक कहना चाहिये ।
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विवेचन- - मन, वचन और काया के व्यापार को 'योग' कहते हैं। वीर्यान्तराय के क्षय, या क्षयोपशम से मनोवर्गणा, वचनवर्गणा और कायवगंणा के पुद्गलों का आलम्बन लेकर आत्म-प्रदेशों में होने वाले परिस्पन्द – कम्पन या हलन चलन को भी 'योग' कहते हैं । इसी योग को 'प्रयोग' भी कहते हैं। आलम्बन के भेद से इसके तीन भेद हैं, मन,
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