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________________ भगवती सूत्र - ८ उ. १ विस्रमा परिणत पुद्गल भावार्थ - २५ प्रश्न - हे भगवन् ! मिश्र-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ? २५ उत्तर - हे गौतम! पांच प्रकार के कहे गये है । यथा - एकेन्द्रियमिश्रपरिणत यावत् पंचेन्द्रिय मिश्रपरिणत । १२५५ २६ प्रश्न - हे भगवन् ! एकेन्द्रिय मिश्र परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ? २६ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार प्रयोग-परिणत पुद्गलों के विषय में नौ दण्डक कहे गये हैं, उसी प्रकार मिश्र-परिणत पुद्गलों के विषय में भी नौ दण्ड कहना चाहिये और उसी प्रकार सारा वर्णन कहना चाहिये । पूर्वोक्त वर्णन से इसमें अन्तर यह है कि- 'प्रयोग-परिणत' के स्थान पर 'मिश्र परिणत - कहना चाहिये । शेष सभी उसी प्रकार कहना चाहिये । यावत् जो पुद्गल पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक मिश्र-परिणत हैं, वे यावत् आयत संस्थान रूप से भी परिणत हैं । विससा - परिणत पुद्गल २७ प्रश्न - वीससापरिणया णं भंते ! पोग्गला कड़विहा पण्णत्ता ? २७ उत्तर - गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - वण्णपरिणया गंधपरिणया, रसपरिणया, फासपरिणया, संठाणपरिणया । जे वष्णपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - कालवण्णपरिणया, जाव सुकिल्लवण्णपरिणया । जे गंधपरिणया ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - भिगंधपरिणया वि, दुब्भिगंधपरिणया वि एवं जहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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