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भगवती सूत्र - श. ८ उ. १ एक द्रव्य परिणाम
पण्णवणाए तहेव निरवसेसं जाव जे संठाणओ आययसंठाणपरिया ते वणओ कालवण्णपरिणया वि, जाव लक्खफा सपरिणया
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भावार्थ - २७ प्रश्न - हे भगवन् ! विस्रसा परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
२७ उत्तर - हे गौतम ! वे पांच प्रकार के कहे गये हैं। यथा- वर्ण परिणत, गंध- परिणत, रस- परिणत, स्पर्श-परिणत और संस्थान- परिणत। वर्ण- परिणत पुद्गल पांच प्रकार के कहे गये हैं। यथा-काला वर्णपने परिणत यावत् शुक्ल वर्णपने परिणत | जो गन्ध परिणत हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-सुरभिगंध परिणत और दुरभिगन्ध- परिणत। जिस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र के पहले पद में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिये । यावत् जो पुद्गल संस्थान से आयत संस्थान रूप परिणत हैं, वे वर्ण से काला वर्णपने भी परिणत हैं यावत् रूक्ष स्पर्शपने भी परिणत हैं ।
विवेचन - स्वभाव से परिणाम को प्राप्त पुद्गल 'विस्रसापरिणत' कहलाते हैं । उनके वर्ण की अपेक्षा पांच, गन्ध की अपेक्षा दो, रस की अपेक्षा पांच, स्पर्श की अपेक्षा आठ और संस्थान की अपेक्षा पांच भेद होते हैं। इनका विशेष विवरण प्रजापना सूत्र के पहले पद में है ।
एक द्रव्य परिणाम
२८ प्रश्न - एगे भंते! दव्वे किं पओगपरिणए, मीसा परिणए, वीससा परिणए ?
२८ उत्तर - गोयमा ! पओगपरिणए वा, मीसा परिणए वा,
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