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________________ १२५४ भगवती सूत्र - रा. ८. १ मिश्रपरिणत पुद्गल विषयक नौ दण्डक जानना चाहिये । इस प्रकार अनुक्रम से सभी जानना चाहिये। जिसके जितने शरीर और इन्द्रियाँ हों, उसके उतने शरीर और उतनो इन्द्रियाँ कहनी चाहिये । यावत् जो पुद्गल पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक देव पंचेन्द्रिय वक्रिय तेजस् कार्मण तथा श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय प्रयोग-परिणत हैं, वे वर्ण से काला वर्णने यावत् संस्थान से आयत संस्थानपने परिणत हैं। इस प्रकार ये नव. ause कहे गये हैं । विवेचन - शरीर, इन्द्रिय, वर्णादि विशिष्ट यह नौवां दण्डक कहा गया है । मिश्रपरिणत पुद्गल विषयक नौ दण्डक २५ प्रश्न - मीसापरिणया णं भंते ! पोग्गला कड़विहा पण्णत्ता ? २५ उत्तर - गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा - एगिंदिय मीसापरिणया, जाव पंचिंदियमीमा परिणया । २६ प्रश्न - एगिंदियमीसा परिणया णं भंते ! पोग्गला कड़विहा पण्णत्ता ? २६ उत्तर - गोयमा ! एवं जहा पओगपरिणएहिं णव दंडगा भणिया, एवं मीसा परिणएहिं वि णव दंडगा भाणियव्वा, तहेव सव्वं णिरवसेसं णवरं अभिलावो 'मीसापरिणया' भाणियध्वं मेसं तं चेव, जाव जे पज्जत्ता सव्व सिद्ध - अणुत्तरोववाहअ जाव आययमाणपरिणया वि । १, कठिन शब्दार्थ - - निरवसेसं - - सम्पूर्ण, नवरं - विशेषता । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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