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भगवती मूत्र - श. ८ उ. १ पुद्गलों का प्रयोग-परिणतादि म्वरूप
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प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गलों के विषय में भी जानना चाहिये।
- १९ प्रश्न--हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिक प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
१९ उत्तर-हे गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा-पर्याप्त रत्नप्रभा पृथ्वी नैरयिक प्रयोग-परिणत और अपर्याप्त रत्नप्रभा पृथ्वी नरयिक प्रयोग-परिणत । इसी प्रकार यावत् अधः सप्तम पृथ्वी नरयिक प्रयोग-परिणत तक कहना चाहिये।
२० प्रश्न-हे भगवन् ! समूच्छिम जलचर तिर्यंच-योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
२० उत्तर-हे गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा--पर्याप्त सम्मूच्छिम जलचर तिर्य चं-योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्त सम्मच्छिम जलचर तिर्यंच-योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल । इसी प्रकार गर्भज जलचरों के विषय में भी जानना चाहिये । इसी प्रकार सम्मच्छिम और गर्भज चतुष्पद स्थलचर जीवों के विषय में यावत् खेचर जीवों तक के विषय में भी जानना चाहिये । इन प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो दो भेद कहने चाहिये।
. २१ प्रश्न-हे भगवन् ! सम्मूच्छिम मनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ? ... २१ उत्तर-हे गौतम ! वे एक प्रकार के कहे गये हैं। यथा--अपर्याप्त. सम्मच्छिम मनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल ।
२२ प्रश्न- हे भगवन् ! गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
. २२ उत्तर-हे गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा--पर्याप्त गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्त गर्भज मनुष्य पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल ।
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