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१२४२ भगवती सूत्र - ८ उ. १ पुद्गलों का प्रयोग परिणतादि स्वरूप
२० उत्तर - गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पजत्तग० अपजत्तगः । एवं गव्भवक्कंतिया वि । संमुच्छिम चउप्पयथलयरा एवं चैव एवं गव्भवक्कंतिया वि । एवं जाव संमुच्छिमखहयर Torariतिया य, एक्क्के पजत्तगा अपज्जत्तगा य भाणियव्वा ।
२१ प्रश्न - संमुच्छिममणुस्सपंचिंदिय० पुच्छा ।
२१ उत्तर - गोयमा ! एगविहा पण्णत्ता, अपजत्तगा चैव । २२ प्रश्न - गव्भवक्कंतियमणुस्सपंचिंदिय० पुच्छा । २२ उत्तर - गोयमा ! दुविद्या पण्णत्ता, तं जहा -पजत्तगगभवक्कंतिया वि. अपजत्तगगव्भवक्कतिया वि ।
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कठिन शब्दार्थ -- अपज्जत्तगं-- अपर्याप्तक ।
भावार्थ - - १७ प्रश्न - हे भगवन् ! सूक्ष्म पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
१७ उत्तर - हे गौतम ! दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा-पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुद्गल और अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुद्गल । (कोई कोई आचार्य अपर्याप्त को पहले और पर्याप्त को पीछे कहते हैं ।) इस प्रकार बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय के मी दो भेद कहना चाहिये । यावत् वनस्पतिकायिक तक सबके सूक्ष्म और बादर, इनके पर्याप्त और अपर्याप्त भेद कहने चाहिये ।
१८ प्रश्न - हे भगवन् ! बेइन्द्रिय प्रयोग- परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
१८ उत्तर - हे गौतम! दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा- पर्याप्त बेइन्द्रियप्रयोग- परिणत पुद्गल और अपर्याप्त बेइन्द्रिय प्रयोग- परिणत पुद्गल । इसी
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