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भगवती सूत्र - श. ७ उ. १ लोक संस्थान
लोक संस्थान
४ प्रश्न - किंसटिए णं भंते ! लोए पण्णत्ते ?
४ उत्तर - गोयमा ! सुपट्टगसंठिए लोए पण्णत्ते, हेट्ठा विच्छिष्णे जाव उपिं उड्ढमुइंगागारसंठिए; तंसि य णं सासयंसि लोगंसि हेडा विच्छिसि जाव उपिं उड्ढमुइंगागारसंटियंसि उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली जीवे वि जाणइ पासइ, अजीवे वि जाणइ पास, तओ पच्छा सिज्झइ, जाव अंतं करेइ |
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कठिन शब्दार्थ - - सुइट्ठगसंठिए - सुप्रतिष्ठक अर्थात् शराव ( सकोरे ) के आकार, उड्ढमुइंगागारसं ठिए - - ऊर्ध्व मृदंग के आकार के समान ।
भावार्थ - ४ प्रश्न - हे भगवन् ! लोक का संस्थान ( आकार ) किस प्रकार का कहा गया है ?
४ उत्तर - हे गौतम ! लोक का संस्थान सुप्रतिष्ठक- शराव ( सकोरे ) के आकार है । वह नीचे विस्तीर्ण है यावत् ऊपर ऊर्ध्व मृदंग के आकार संस्थित है । इस नीचे विस्तीर्ण यावत् ऊपर ऊर्ध्वं मृदंग के आकार वाले लोक में, उत्पन्न केवलज्ञान - दर्शन को धारण करने वाले अरिहन्त जिन केवली, जीवों को भी जानते और देखते हैं तथा अजीवों को भी जानते और देखते हैं। इसके पश्चात् वे सिद्ध होते हैं, यावत् सभी दुःखों का अन्त करते हैं ।
विवेचन - पहले प्रकरण में अनाहारकपन का वर्णन किया गया है । अनाहारकपता लोक-संस्थान के वश से होता है । इसलिए अब लोक-संस्थान के विषय में कहा जाता है । लोक का संस्थान शराव के आकार बतलाया गया है । इसका आशय यह है कि-नीचे एक उलटा शराव ( सकोरा ) रखा जाय, फिर उस पर एक सीधा शराव रखा जाय और उस पर एक उलटा शराव रखा जाय। इस तरह उलटे सीधे और उलटे तीन शरावों
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