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भगवती मूत्र-म. ८ उ. १ पुद्गलों का प्रयोग-परिणतादि स्वरूप
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पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
१० उत्तर-हे गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा-सम्मूच्छिमजलचर-तियंचयोनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल और गर्भज-जलचर-तिर्यच योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल ।
११ प्रश्न-हे भगवन् ! स्थलचर-तिर्यंच-योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
११ उत्तर-हे गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा-चतुष्पद-स्थलचर-तियं च योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिण पुद्गलत और परिसर्प-स्थलचर-तिर्यच योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल ।
१२ प्रश्न-हे भगवन् ! चतुष्पद-स्थलचर तियँच-योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
१२ उत्तर-हे गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा-सम्मच्छिमचतुष्पद स्थलचर तिर्यंच योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल और गर्भजचतुष्पद-स्थलचर तियंच-योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुदगल । इसी अभिलाप (पाठ) द्वारा परिसर्प दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा-उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प। उरपरिसर्प दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा-सम्मच्छिम और गर्भज । इसी प्रकार भुजपरिसर्प और खेचर के भी दो दो भेद कहे गये हैं।
... १३ प्रश्न-मणुस्सपंचिंदियपओग० पुच्छा।
१३ उत्तर-गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-समुच्छिममणुस्स०, गम्भवक्कंतिय मणुस्स० ।
भावार्थ-१३ प्रश्न-हे भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ? - १३ उत्तर-हे गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गये हैं । यथा-सम्मच्छिम
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