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१२३६ भगवती सूत्र - श. = उ. १ पुद्गलों का प्रयोग- परिणतादि स्वरूप
यर०, गव्भवक्कंतियजलयरः ।
११ प्रश्न – थलयतिरिक्ख० पुच्छा ।
११ उत्तर - गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - चउप्पयथलयर०, परिसप्पथलयर० ।
१२ प्रश्न - चउप्पयथलयर० पुच्छा ।
१२ उत्तर - गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संमुच्छिमच उप्पयथलयर०, गव्भवक्कंतियच उप्पयथलयर ० । एवं एएणं अभिलावेर्ण परिसप्पा, दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - उरपरिसप्पा य भुयपरिसप्पा य । उरपरिसप्पा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - संमुच्छिमा य गभवक्कंतिया य। एवं भुयपरिसप्पा वि, एवं खहयरा वि ।
कठिन शब्दार्थ- परिसप्पा - परिसर्प ( रेंग कर चलने वाले प्राणी), सम्मुच्छिमा सम्पूच्छिम माता-पिता के संयोग के बिना उत्पन्न होने वाले तिर्यञ्च और मनुष्य, गव्भवक्कंतिया –गर्भव्युत्क्रान्त - गर्भ से उत्पन्न होने वाले, थलयर - पृथ्वी पर चलने वाले, च उप्पय - -चार पाँवों वाले, अभिलावेणं - अभिलाप - (पाठ), उरपरिसप्प - पेट से रेंगकर चलने वाले, भुयपरिसप्प - भुजा से से चलने वाले, खहयरा - खेचर ( उड़ने वाले पक्षी ) । भावार्थ - ९ प्रश्न - हे भगवन् ! तिथंच-योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग- परिणत पुद्गल कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
९ उत्तर - हे गौतम ! तिर्यंच-योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोगपरिणत पुद्गल तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-जलचर - तिर्यंच-योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग- परिणतपुद्गल, स्थलचर तियंचयोनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग- परिणत पुद्गल और खेचरतिर्यंच-योनिक पंचेन्द्रिय-प्रयोग- परिणत पुद्गल ।
१० प्रश्न - हे भगवन् ! जलचर - तिथंच योनिक पंचेन्द्रिय प्रयोग - परिणत
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