________________
१२३०
__ भगवती सूत्र-श. ७ उ. १० अचित्त पुद्गलों का प्रकाश
को भावित करते हुए विचरने लगे। यावत् प्रथम शतक के नौवें उद्देशक में वर्णित कालास्यवेसी पुत्र की तरह सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत् समस्त दुःखों से मुक्त हुए।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
विवेचन-कुपित हुए अनगार से जो तेजोलेश्या निकलती है, उसके पुद्गल अचित्त होते है । सचित्त तेजस्काय के पुद्गल तो अवभासित यावत् प्रकाशित होते ही हैं, परन्तु क्या अचित्त पुद्गल मी अवभासित यावत् प्रकाशित होते हैं ? इस शंका के समाधान के लिये उपरोक्त प्रश्न किये गये । जिनका उत्तर भगवान् ने 'हाँ' में दिया है । कुपित अनगार की तेजोलेश्या दूर जाकर गिरती है अथवा गन्तव्य देश के भाग में जाकर गिरती है । तेजोलेश्या के पुद्गल अचित्त होते हैं ।
॥ इति सातवें शतक का दसवाँ उद्देशक संपूर्ण ॥
॥ इति सातवाँ शतक सम्पूर्ण ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org