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________________ भगवती सूत्र-श. ७ उ. १० अचित्त पुद्गलों का प्रकाश १२२९ गारे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता वहूहिं चउत्थ-छ?-ऽट्टम-जाव अप्पाणं भावभाणे जहा पढमसए कालासवेसियपुत्ते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे । * सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ सत्तमसयस्स दसमो उद्देसओ समत्तो॥ ॥ सत्तमं सयं समत्तं ॥ कठिन शब्दार्थ--ओभासंति-प्रकाशित हो है, उज्जोति--वस्तु को उद्योतित(प्रकाशित) करते हैं, तवेति-पदार्थ को तप्त करते हैं, पभासंति--वस्तु को जला देने वाले होने से प्रभाव को प्राप्त करते हैं. निसट्टा-निकलकर, णिपतइ-गिरती हैं। . भावार्थ--१० प्रश्न-हे भगवन् ! क्या अचित्त पुद्गल भी अवभासित होते हैं, उद्योत करते हैं, तपते हैं और प्रकाश करते हैं ? १० उत्तर-हां, कालोदायी ! करते हैं। ... ११ प्रश्न-हे भगवन् ! कौन-से अचित्त पुद्गल अवभास करते हैं यावत् प्रकाश करते हैं? ११ उत्तर-हे कालोदायिन् ! कुपित हुए साधु की तेजोलेश्या निकलकर दूर जाकर गिरती है, जाने योग्य देश (स्थान) में जाकर उस देश में गिरती है । जहाँ जहाँ वह गिरती है, वहां वहां अचित्त पुद्गल भी अवभास करते हैं यावत् प्रकाश करते हैं । इस कारण है कालोदायिन् ! अचित्त पुद्गल भी अवभास करते है यावत् प्रकाश करते हैं। इसके बाद कालोदायी अनगार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दना नमस्कार करते हैं और बहुत चतुर्थ (उपवास), षष्ठ (दो उपवास), अष्टम (तीन उपवास) इत्यादि तप द्वारा अपनी आत्मा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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