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भगवती मूत्र-श. ७ उ. १० पाप और पुण्य कर्म और फल
७ उत्तर-हंता, अत्थि। ८ प्रश्न-कहं णं भंते ! जीवाणं कल्लाणा कम्मा जाव कजति ?
८ उत्तर-कालोदाई ! से जहाणामए केई पुरिसे मणुण्णं थालीपागसुधं अट्ठारसवंजणाउलं ओसहमिस्सं भोयणं भुंजेज्जा, तस्स णं भोयणस्स आवाए णो भद्दए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे परिणम माणे सुरूवत्ताए, सुवण्णत्ताए, जाव सुहत्ताए, णो दुवखत्ताए, भुजो भुजो परिणमइ, एवामेव कालोदाई ! जीवाणं पाणाइवायवेरमणे जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे, जाव मिच्छादसणसल्लविवेगे, तस्स णं आवाए णो भदए भवइ, तओ पच्छा परिणममाणे परिणममाणे मुरूवत्ताए जाव णो दुक्खत्ताए भुजो भुजो परिणमइ, एवं खलु कालोदाई ! जीवाणं कल्लाणा कम्मा जाव कति ।
कठिन शब्दार्थ-कल्लाणाकम्मा-शुभ कर्म ।
भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या जीवों के कल्याण फल-विपाक सहित कल्याण (शुभ) कर्म होते हैं ?
७ उत्तर-हाँ, कालोदायिन् ! होते हैं।
८ प्रश्न-हे भगवन् ! जीवों के कल्याण फल-विपाक सहित कल्याणकर्म कैसे होते हैं ?
८ उत्तर-हे कालोदायिन् ! जैसे कोई एक पुरुष, सुन्दर भाण्ड में रांधने से शुद्ध पका हुआ और अठारह प्रकार के दाल-शाकादि व्यञ्जनों से युक्त औषध मिश्रित भोजन करता है, तो वह भोजन प्रारंभ में अच्छा नहीं लगता, परन्तु उसके
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