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भगवती सूत्र - ७ उ.०१ अनाहारक और अल्पाहारक का काल
( अवश्य ) आहारक होता है। इस प्रकार नैरयिक आदि चौवीस ही दण्डक में कहना चाहिए । सामान्य जीव और एकेंद्रिय, चौथे समय में आहारक होते हैं । इनके सिवाय शेष जीव, तीसरे समय में आहारक होते हैं ।
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३ प्रश्न - हे भगवन् ! जीव किस समय में सब से अल्प आहार वाला होता है ?
३ उत्तर - हे गौतम ! उत्पत्ति के प्रथम समय में और भव (जीवन) के अन्तिम समय में जीव सब से अल्प आहार वाला होता है। इस प्रकार वैमानिक पर्यन्त चौबीस ही दण्डक में कहना चाहिए ।
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विवेचन - यहाँ यह प्रश्न किया गया है कि परभव में जाता हुआ जीव, किस समय । में अनाहारक होता है ? इसका उत्तर यह दिया गया कि जब जीव, एक भव की आयुष्य पूर्ण करके ऋजुगति से परभव में जाता है और प्रथम समय में ही वहां उत्पन्न होता है, तब परभव सम्बन्धी आयुष्य के प्रथम समय में ही आहारक होता है । परन्तु जब वक्रगति द्वारा दो समय में उत्पन्न होता है, तब प्रथम समय में अनाहारक होता है और दूसरे समय में आहारक होता है । जब तीन समय में उत्पन्न होता है, तत्र प्रथम के दो समयों में अनाहारक होता है और तीसरे समय में आहारक होता है । जब परभव में चार समय में उत्पन्न होता है, तब प्रथम के तीन समयों में अनाहारक होता है और चौथे समय में आहारक होता है । तीन वक्र ( मोड़) वाली गति में चार समय लगते है । तीन मोड़ इस प्रकार होते हैं; - सनाड़ी से बाहर विदिशा में रहा हुआ कोई जीव, जब अधोलोक से ऊर्ध्वलोक में सनाड़ी से बाहर दिशा में उत्पन्न होता है, तब वह प्रथम समय में त्रिश्रेणी से समश्रेणी में आता है, दूसरे समय में साड़ी में प्रवेश करता है, तीसरे समय में ऊर्ध्वलोक में जाता है और चौथे समय में सनाड़ी से बाहर निकल कर उत्पत्ति स्थान में पहुँच कर उत्पन्न होता है । इनमें से पहले के तीन समयों में विग्रहंगति होती है ।
इस विषय में दूसरे आचार्य तो इस प्रकार कहते हैं कि चार वक्र की भी विग्रहगति होती है । यथा - कोई जीव, अधोलोक में त्रसनाड़ी से बाहर विदिशा में रहा हुआ है, वहां से मरकर ऊर्ध्वलोक में त्रसनाड़ी से बाहर विदिशा में उत्पन्न हो, तब पहले समय में विश्रेणी से समश्रेणी में आता है, दूसरे समय में बसनाड़ी में प्रवेश करता है, तीसरे समय में ऊर्ध्वलोक में जाता है, चौथे समय में बसनाड़ी से बाहर निकल कर समश्रेणी में आता है और पाँचवें
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