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भगवती सूत्र – श. ७ उ. ९ रथमूसल संग्राम
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तए णं से वरुणे णागणत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीक. ए समाणे अत्थामे, अबले, अवीरिए, अपुरिसवकारपरवकमे अधारणिज्जमिति कट्टु तुरए णिगिues, तुरए णिगिव्हित्ता रहं परावत्तेड़, रहं परावत्तित्ता रहमुसलाओ संगामाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता, एगंतमंत अवक्कमइ, एगंतमंत अवक्कमित्ता तुरए णिगिव्हड तुर णिणिहित्ता रहं वेइ, रहं ठवेत्ता, रहाओ पचोर, रहाओ पचोरुहिता तुर मोह, तुरए मोएत्ता तुरए विसज्जेइ, तुरए विसज्जित्ता दग्भसंथारगं संथरह, दव्भसंथारगं संथरित्ता दव्भसंथा रगंदुरु
, दब्भसंथारगं दुरुहित्ता, पुरत्थाभिमुहे संपलियं कणिसपणे करयलजाव कट्टु एवं वयासी - "णमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं, जाव संपत्ताणं, णमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीररस, आइगररस, जाव संपाविकामस्स, मम धम्मायरियरस, धम्मोव देसगस्स वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासउ मे से भगवं तत्थगए, जाव वंद णमंसह, वंदित्ता णमंसित्ता, एवं वयासी - पुव्विं पि मए समणरस भगवओ महावीरस्म अंतिए थूलए पाणाइवाए पचखाए जावजीवाए, एवं जाब थूलए परिग्गहे पञ्चक्खाए जावजीवाए: इयाणि पिणं अहं तस्सेव भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाड़वायं पत्रक्खामि जावजीवाए, एवं जहा खंदओ, जाव एवं पिणं चरिमेहिं ऊसास-णीसासेहिं बोसिरिस्मामि त्ति कट्टु सण्णाहपट्टे मुयह, मुड़ता
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