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भगवती सूत्र - ७ उ. ९ रथमूमल मंग्राम
सल्लुद्वरणं करेड़, सल्लुद्धरणं करेत्ता आलोइयपडिक्कंते, समाहिपत्ते, आणुपुव्वी कालगए ।
कठिन शब्दार्थ - अत्थामे -- सामान्य रूप से शक्ति रहित, अबले-- शारीरिक बल रहित, अवीरिए - मानसिक शक्ति रहित, अधारणिज्जं -- अपने शरीर को धारण करने में असमर्थ, तुरए णिगिण्हइ -- घोड़े को रोका, पच्चोरुहइ -- उतरता है, तुरए मोएइ -- घोड़े को छोड़ता है, दब्मसंथारगं संथरइ -- घास का बिछाना बिछाता है, दुरुहइत्ता -- बैठकर, पुरत्या भिमु -- पूर्व की ओर मुंह करके, सपलियंकणिसणे -- पर्यंक आसन से बैठकर, करयल - - हाथ की हथेलियाँ, पासउ -- देखें, सण्णाहपट्टमुयइ -- इ-- कवच छोड़ता - खोलता है, सल्लुद्धरणं करेइ-- बाण को निकालता है, आलोइयपडिक्कंते-- आलोचना प्रतिक्रमण करता है ।
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भावार्थ - इसके बाद उस पुरुष के प्रबल प्रहार से घायल हुआ वरुणनागनतुआ शक्ति रहित, निर्बल, वीर्यरहित और पुरुषकार पराक्रम से रहित बना और 'अब मेरा शरीर टिक नहीं सकेगा - ऐसा समझ कर रथ को वापिस फेरा और संग्राम स्थल से बाहर निकला। एकान्त स्थान में आकर रथ को खड़ा किया। रथ से नीचे उतर कर उसने घोडों को छोड़ कर विसर्जित कर दिया। फिर दर्भ ( डाभ ) का 'संथारा बिछाया और पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पर्यंकासन से दर्भ के संथारे पर बैठा और दोनों हाथ जोड़कर यावत् इस प्रकार कहा - 'अरिहन्त भगवन्त यावत् जो सिद्धगति को प्राप्त हुए हैं, उन्हें नमस्कार हो । मेरे धर्म-गुरु धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को नमस्कार हो, जो धर्म की आदि करने वाले हैं यावत् सिद्धगति को प्राप्त करने की इच्छा वाले हैं। वहाँ दूर स्थान पर रहे हुए भगवान् को यहाँ रहा हुआ में वन्दना करता हूँ। वहाँ रहे हुए भगवान् मुझे देखें," इत्यादि कहकर उसने वन्दन नमस्कार किया । वन्दन नमस्कार करके इस प्रकार कहा कि " पहले मैंने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास जीवन पर्यन्त स्थूल प्राणातिपात का प्रत्याख्यान किया था, यावत् स्थूल परिग्रह का जीवन पर्यन्त प्रत्याख्यान किया था, अब अरिहन्त भगवान् महावीर स्वामी के पास ( साक्षी से ) सर्व प्राणातिपात का प्रत्याख्यान जीवन पर्यन्त करता हूँ ।" इस प्रकार
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