________________
भगवती सूत्र-श. ७ उ. ९ महाशिला-कंटक संग्राम
जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिबुडे, महयाभडचडगरविंदपरिक्खित्ते जेणेव महासिलाकंटए संगामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महासिलाकंटयं संगामं ओयाए । पुरओ य से सक्के देविंदे देवराया एगं महं अभेजकवयं वइरपडिरूवगं विउवित्ता णं चिट्ठइ । एवं खलु दो इंदा संगामे संगामेंति, तं जहा-देविंदे य, मणुइंदे य । एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया पराजिणित्तए । तएणं से कूणिए राया महासिलाकंटकं संगामं संगामेमाणे णव मल्लई णव लेच्छई कासी कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो हयमहियपवरवीरघाइय-विवडियचिंधद्धयपडागे किच्छपाणगए दिसोदिसिं पडिसेहित्था।
कठिन शब्दार्थ-हारोत्थयसुकयरइयवच्छे-जिसका हारमाला आदि से वक्षस्थल शोभित है, महाभडचडगरविंदपरिक्खिते-महान् योद्धाओं के समूह से व्याप्त, ओयाएउतरा, अभेज्जकवयं-अभेद्यकवच, वहरपडिरूवगं-वज्र जैसा, हयमहियपदरवीरघाइयविवडियचिधद्धयपडागे-उनके महान् वीर योद्धाओं को मारा, घायल किये, उनकी चिन्हांकित पताका गिरादौ, किच्छपाणगए-प्राण संकट में पड़ गए, पडिसेहित्था-भगा दिये। . भावार्थ-इसके पश्चात् हारों से आच्छादित वक्षस्थल वाला कोणिक, जनमन में रति उत्पन्न करता हुआ और औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार बारबार श्वेत चामरों से बिजाता हुआ यावत् घोडे, हाथी, रथ और उत्तम योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणो सेना से परिवृत महान् सुभटों के विस्तीर्ण ससह से व्याप्त कोणिक राजा, महाशिला-कंटक संग्राम में आया। उसके आगे देवेन्द्र, देवराज शक्र, वज्र के समान अभेद्य एक महान् कवच की विकुर्वणा करके खड़ा हुआ। इस प्रकार . मानो दो इन्द्रः संग्राम करने लगे। यथा-(१) देवेन्द्र और (२.) मनुजेन्द्र ।. अब
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org