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________________ भगवती मूत्र-श. ७ उ. ९ महाशिला कंटक संग्राम उनसे इस प्रकार कहा कि-हे देवानुप्रियों ! शीघ्र ही 'उदायो' नामक पलहस्ती - को तैयार करो और हाथी, घोड़ा, रथ और योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना सन्नद्धबद्ध करो अर्थात् शस्त्रादि से सुसज्जित करो और वंसा करके अर्थात मेरी आज्ञानुसार कार्य करके मेरी आज्ञा वापिस मुझे शीघ्र सौंपो । इसके पश्चात् कोणिक राजा के द्वारा इस प्रकार कहे हुए वे कौटम्बिक पुरुष हृष्ट, तुष्ट हुए यावत् मस्तक पर अञ्जलि करके-हे स्वामिन् ! जैसी आपकी आज्ञा'-ऐसा कहकर विनयपूर्वक वचनों द्वारा आज्ञा स्वीकार की। वचन को स्वीकार करके कुशल आचार्यों द्वारा शिक्षित और तीक्ष्ण मति-कल्पना के विकल्पों से युक्त इत्यादि विशेषणों युक्त औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार यावत् भयंकर संग्राम के योग्य उदार (प्रधान) उदायो नामक पट्टहस्ती को सुसज्जित किया । तथा घोड़ा, हाथी, रथ और योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित किया। सुसज्जित करके जहाँ कोणिक राजा था, वहां आये और दोनों हाथ जोड़कर कोणिक राजा को उसकी आज्ञा वापिस सौंपी। इसके बाद कोणिक राजा जहाँ स्नानघर हैं, वहां आया और स्नानघर में प्रवेश किया। फिर स्नान एवं बलिकर्म (स्नान सम्बन्धी सभी कार्य किया। प्रायश्चित्तरूप (विघ्नों को नाश करने वाले कार्य) कौतुक (मषतिलकादि) और मंगल करके सब अलङ्कारों से विभूषित हुआ, सन्नद्धबद्ध हुआ। लोह कवच को धारण किया। मुडे हुए धनुर्दण्ड को ग्रहण किया । गले में आभूषण पहने । योबा के योग्य उत्तमोत्तम चिन्ह पट बांधे। आयुध और प्रहरणों को धारण किया, कोरण्टक-पुष्पमाला युक्त छत्र धारण किया। उसके चारों तरफ चामर ढलाये जाने लगे । जय-विजय शब्द उच्चारण किये जाने लगे। ऐसा कोणिक राजा औपपातिक सूत्र में कहे अनुसार यावत् उदायी नामक पट्टहस्ती पर बैठा । - तए णं से कूणिए राया हारोत्थयसुकयरइयवच्छे जहा उबवाइए जाव सेयवरचामराहिं उधुब्वमाणीहिं उधुव्वमाणीहिं हयगय-रहपवर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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