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भगवती सूत्र- श. ७ उ. ९ महाशिला-कंटक संग्राम .
छत्तेणं धरिजमाणेणं चउचामरबालवीइयंगे, मंगलजयसद्दकयालोए एवं जहा उववाइए जाव उवागच्छित्ता उदाई हत्थिरायं दुरूढे ।
कठिन शब्दार्थ-णापमेयं अरहया-अरिहंत जानते हैं, वट्टमाणे-होते हुए, के जइत्या के पराजइत्या-कौन जीता और कौन पराजित हुआ, वजी-वनी-इन्द्र, विदेहपुत्ते-विदेहपुत्र कोणिक, उबढ़ियं-उपस्थित होने पर, खिप्पामेव-शीघ्र, पडिकप्पेह-सजाकर तैयार करो, सण्णाहेह-तैयार करो, एयमाणत्तयं-इस आज्ञा को, पच्चप्पिणह-पीछी अर्पण करो, रण्याराजा, एवं वुत्ता समाणा-इस प्रकार कहने पर, अंजलिकटु-हाथ जोड़कर, एवं सामी तहत्तिहे स्वामी ऐसा ही होगा, छेयारियोवए समतिकप्पणा- कुशल आचार्य के उपदंश से मतिकल्पना द्वारा, सुणिरहि-सुनिपुण, अउज्ज्ञ-अयोद्धचं-जिसके साथ कोई युद्ध नहीं कर सके, तमाणत्तियं पच्चपिणंति-उनकी आज्ञा लौटाई--काम कर देने की सूचना दी, मज्जणघरं-स्नान घर, गाए कयबलिकम्मे-स्नान मर्दनादि किये, कयको उयमंगलपायच्छित्ते-कृत कौतुक मंगल प्रायश्चित्त, सण्णबद्ध वम्मियकबए-सनद्धबद्ध--शस्त्रादि सजकर कवच धारण कर, उप्पिलियसरासणपट्टिए-तने हुए धनुर्दण्ड को धारण कर, पिणद्धगेवेज्ज-विमलवरबधिपट्टेगले में आभूषण पहने और उत्तमोत्तम चिन्हपट्ट बाँधकर, गहियाउहप्पहरणे-आयुध--गदा आदि शस्त्र तथा प्रहरण-भाला आदि शस्त्रों को ग्रहण करके, सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणेकोरंट : पुष्पों की माला वाले छत्र, चउचामरबालवीइयंगे-चार चँवर के बालों से विजाता हुआ, मंगलजयसहकयालोए-जिसके दर्शन से लोक मंगल और जय जयकार करे।
भावार्थ-४ प्रश्न-अरिहन्त भगवान ने यह जाना है, यह सुना है अर्थात प्रत्यक्ष देखा है, विशेष रूप से जाना है कि महाशिलाकण्टक नामक संग्राम है। हे भगवन् ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम चलता था, तब उसमें कौन जीता और कौन हारा?
४ उत्तर-हे गौतम ! वनी अर्थात् इन्द्र और विवेहपुत्र अर्थात् कोणिक राजा जीते । नव मल्लि और नव लच्छी जो कि काशी और कौशल देश के अठारह गणराजा थे, वे पराजित हुए। .
उस समय में 'महाशिला कंटक संग्राम' उपस्थित हुआ जान कर कोणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों (आज्ञा पालक सेवकों) को बुलाया । बुलाकर
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