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१९८४
भगवती सूत्र-श. ७ उ. ८ पाप दुःखदायक
जे य कजिस्सइ सव्वे से दुक्खे, जे णिजिण्णे से सुहे ?
३ उत्तर-हंता, गोयमा ! णेरइयाणं पावे कम्म जाव सुहे। एवं जाव वेमाणियाणं।
४ प्रश्न-कइ णं भंते ! सण्णाओ पण्णत्ताओ?
४ उत्तर-गोयमा ! दस सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आहारसण्णा, भयसण्णा, मेहुणसण्णा, परिग्गहसण्णा, कोहसण्णा, माणसण्णा, मायासण्णा, लोभसण्णा, लोगसण्णा, ओहसण्णा । एवं जाव वेमाणियाणं।
५ णेरइया दसविहं वेयणं पञ्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहासीयं, उसिणं, खुहं, पिवासं, कंडं, परझं, जरं, दाह, भयं, सोगं । ____ कठिन शब्दार्थ-सन्ना-संज्ञा-इच्छा, पच्चणुभवमाणा-अनुभव करते हुए, कंडेखुजली, परज्मं परतन्त्रता, नरं-ज्वर ।
भावार्थ-३ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीवों द्वारा जो पापकर्म किया गया है, किया जाता है और जो किया जायेगा, क्या वह सब दुःखरूप है। और जिसकी निर्जरा की गई है, क्या वह सब सुख रूप है ?
. ३ उत्तर-हां, गौतम ! नरयिकों द्वारा जो पापकर्म किया गया है यावत् वह दुःख रूप है और जिसकी निर्जरा की गई है, वह सुख रूप है । इस प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त चौवीस दण्डक में जान लेना चाहिये।
४ प्रश्न-हे भगवन् ! संज्ञा कितने प्रकार की कही गई है ?
४ उत्तर-हे गौतम ! संज्ञा दस प्रकार की कही गई है । यथा-१ आहार संज्ञा, २ भय संज्ञा, ३ मैथुन संजा, ४ परिग्रह संज्ञा, ५ क्रोध संज्ञा, ६ मान संज्ञा, ७ माया संज्ञा, ८ लोभ संज्ञा ९ लोक संज्ञा और १० ओघ संज्ञा । इस प्रकार
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