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________________ भगवती सूत्र-श. ७ उ. ८ पाप दुःखदायक ११८३ अतीत काल में केवल संयम द्वारा, केवल संवर द्वारा, केवल ब्रह्मचर्य द्वारा और केवल अष्टप्रवचन माता के पालन द्वारा सिद्ध हुआ है, बुद्ध हुआ है, यावत् सर्व दुःखों का अन्त किया है ? ___ १ उत्तर-हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इस विषय में प्रथम शतक के चौथे उद्देशक में जो कहा है वही यावत् 'अलमत्यु' पाठ तक कहना चाहिये। २ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या हाथी और कुन्थुए का जीव समान है ? २ उत्तर--हाँ, गौतम ! हाथी और कुन्थआ दोनों का जीव समान हैं। इस विषय में राजप्रश्नीय सूत्र में कहें अनुसार यावत् 'खुड्डियं वा महालियं वा' पाठ तक कहना चाहिये। विवेचन-छद्मस्थ मनुष्य के विषय में जिस प्रकार भगवती सूत्र के पहले शतक के चौथे उद्देशक (प्रथम भाग पृ. २१६) में कथन किया गया है, उसी प्रकार यहां भी कथन करना चाहिये । भूतकाल में, वर्तमान काल में और भविष्यत्काल में जितने सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए, होते हैं और होंगे, वे सभी उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक अरिहन्त जिन केवली होकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए हैं, होते हैं और भविष्य में भी होंगे। उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारक अरिहन्त जिन केवली को 'अलमत्थु' (अलमस्तु-पूर्ण) कहना चाहिये। हाथी और कुन्थुआ का जीव समान है । इस विषय में राजप्रश्नीयसूत्र में दीपक का दृष्टांत दिया गया है । जैसे-एक दीपक का प्रकाश किसी एक कमरे में फैला हुआ है, यदि उसको किसी बर्तन द्वारा ढक दिया जाय, तो उसका प्रकाश उस बर्तन परिमाण हो जाता है, इसी प्रकार जब जीव, हाथी का शरीर धारण करता है, तो उतने बड़े शरीर में व्याप्त रहता है और जब कुन्थुआ का शरीर धारण करता है, तो उस छोटे शरीर में व्याप्त रहता है । इस प्रकार केवल शरीर में ही छोटे बड़े का अन्तर रहता है, किन्तु जीव में कुछ भी अन्तर नहीं है । सभी जीव समान हैं । पाप दुःखदायक ३ प्रश्न-णेरइयाणं भंते ! पावे कम्मे जे य कडे, जे य कजइ, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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