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________________ भगवती सूत्र-श. ७ उ. ७ अकाम वेदना का वेदन · १९८१ कठिन शब्दार्य-पकामणिकरणं-तीव्र इच्छापूर्वक । भावार्थ-२५ प्रश्न-हे भगवन् ! क्या ऐसा भी होता है कि समर्थ होते हुए भी जीव, प्रकामनिकरण (तीव्र इच्छापूर्वक) वेदना को वेदते हैं ? .. २५ उत्तर-हां, गौतम ! वेदते हैं। २६ प्रश्न-हे भगवन् ! समर्थ होते हुए भी जीव, प्रकामनिकरण वेदना किस प्रकार वेदते हैं ? ___२६ उत्तर-हे गौतम ! जो समुद्र के पार जाने में समर्थ नहीं हैं, जो समुद्र के पार रहे हुए रूपों को देखने में समर्थ नहीं हैं, जो देवलोक में जाने में समर्थ नहीं है और जो देवलोक में रहे हुए रूपों को देखने में समर्थ नहीं है, हे गौतम ! वे समर्थ होते हुए भी प्रकामनिकरण वेदना वेदते हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। विवेचन-जो असंज्ञी अर्थात् मन रहित प्राणी हैं, उनके मन नहीं होने से इच्छा शक्ति और ज्ञान शक्ति के अभाव में अकामनिकरण (अनिच्छा पूर्वक-अज्ञानपने ) सुख-दुःखरूप वेदना वेदते हैं। -- जो संज्ञी अर्थात् मन सहित जीव हैं, वे भी अनिच्छापूर्वक अज्ञानपने सुख-दुःख का अनुभव करते हैं। जैसे कि जिस मनुष्य में देखने को शक्ति है, किन्तु शक्ति होते हुए भी वह अन्धकार में रहे हुए पदार्थों को दीपक के बिना नहीं देख सकता, तथा पीठ पीछे रहे हुए यावत् ऊपर और नीचे रहे पदार्थों को भी देखने की. शक्ति होते हुए भी उपयोग के बिना नहीं देख सकता । तात्पर्य यह है कि सामर्थ्य होते हुए भी इच्छा शक्ति और ज्ञानशक्ति युक्त जीव, अज्ञानदशा में सुख-दुःख का अनुभव करते हैं। जबकि असंज्ञी जीव सामयं के अभाव में इच्छा शक्ति और ज्ञान शक्ति रहित होने से अनिच्छापूर्वक अज्ञान-दशा में सुख-दुःख का अनुभव करते हैं। . संज्ञी (मन सहित) जीव प्रकाम-निकरण (तीव्र अभिलाषापूर्वक) वेदना वेदते हैं। जैसे कि समुद्र के पार जाने की तथा उस पार रहे हुए रूपों को देखने की तथा देवलोक में जाने की एवं वहां के रूपों को देखने की शक्ति नहीं होने से तीव्र अभिलाषापूर्वक वेदना वेदते हैं । उन जीवों में इच्छा शक्ति और ज्ञान शक्ति है, परन्तु उसे प्रवृत्त करने का सामर्थ्य नहीं है । उसकी तीव अभिलाषा मात्र है । इससे वे वेदना का अनुभव करते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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