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________________ १९८० भगवती सूत्र-श. ७ उ. ७ अकाम वेदना का वेदन ।' २३ प्रश्न-हे भगवन ! क्या ऐसा भी है कि समर्थ होते हुए (संज्ञी होते हए) भी जीव, अकाम-निकरण बेदना वेदते हैं ? . २३ उत्तर-हां, गौतम ! वेदते हैं। - २४ प्रश्न-हे भगवन् ! समर्थ होते हुए भी जीव, अकामनिकरण वेदना किस प्रकार वेदते हैं ? - २४ उत्तर-हे गौतम ! जो जीव समर्थ होते हुए भी अन्धकार में दीपक के बिना पदार्थों को देखने में समर्थ नहीं होते, अवलोकन किये बिना सामने के पदार्थों को नहीं देख सकते, अवेक्षण किये बिना पीछे रहे हुए रूपों को नहीं देख सकते, अवलोकन किये बिना दोनों और के रूपों को नहीं देख सकते, आलोचन किये बिना ऊपर और नीचे के रूपों नहीं देख सकते, वे समर्थ होते हुए भी अकाम-निकरण वेदना वेदते हैं। २५ प्रश्न-अत्थि णं भंते ! पभू वि पक.मणिकरणं वेयणं वेदेति ? २५ उत्तर-हंता, अत्थि। २६ प्रश्न-कहं णं भंते ! पभू वि पकामणिकरणं वेयणं वेदेति ? २६ उत्तर-गोयमा ! जे णं णो पभू समुदस्स पारं गमित्तए, जे णं णो पभू समुदस्स पारगयाई रूकई पासित्तए, जे णं णो पभू देवलोगं गमित्तए, जे णं णो पभू देवलोगगयाइं रूवाई पासित्तए, एस णं गोयमा ! पभू वि पकामणिकरणं वेयणं वेदेति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ॥ सत्तमस्स सयरस सत्तमो उद्देसओ समत्तो॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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