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भगवती सूत्र - श. ७ उ ७ अकाम वेदना का वेदन
२४ प्रश्न - कहं णं भंते! पभू वि अकामणिकरणं वेयणं
वेदेति ?
२४ उत्तर - गोयमा ! जे णं णो पभू विणा पईवेणं अंधकारंसि रूवाई पासित्तए, जे णं णो पभू पुरओ रुवाई अणिज्झाइत्ताणं पासित्तए, जे णं णो पभू मग्गओ रूवाएं अणवयक्खित्ता णं पासितए, जे णं णो पभू पासओ रूवाहं अणवलोइत्ता णं पासित्तए, जे णं णो पभू उड्ढं रूवाई अणालोएत्ता णं पासित्तए, जे णं णो पभू अहे रूवाईं अणालोइत्ता णं पासित्तए, एस णं गोयमा ! पभू वि अकामणिकरणं वेयणं वेदेति ।
कठिन शब्दार्थ - असण्णिणो बिना मन वाले जीव, तमपडलमोहजालपरिच्छण्णाअज्ञान अन्धकार और मोह के पर्दे से आवृत - ढके हुए, विणा पईवेणं - बिना दीपक के, अकामणिकरण - अनिच्छा पूर्वक, अणिज्झाइत्ता - देखे बिना, अणवयक्तित्ता - पश्चाद् भाग को देखे बिना, अणबलोइत्ता - बिना देखे ।
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. भावार्थ - २२ प्रश्न- हे भगवन् ! जो ये असंज्ञी ( मन रहित ) प्राणी हैं, per - पृथ्वीकाfor, अकायिक, तेउकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और छठे कितनेक कायिक ( सम्मूच्छिम त्रसकायिक) जीव जो अन्ध ( अज्ञानी), मूढ, अज्ञानान्धकार में प्रविष्ट, अज्ञानरूप आवरण और मोह जाल के द्वारा आच्छादित हैं, वे अकामनिकरण ( अनिच्छापूर्वक) वेदना वेदते हैं, - क्या ऐसा कहना चाहिये ?
२२ उत्तर - हां, गौतम ! जो ये असंज्ञी प्राणी पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक छठे त्रस ( सम्मूच्छिम त्रस ) कायिक जीव, ये सब अकामनिकरण वेदना वेदते हैं।
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