________________
११७८
भगवती सूत्र-श. ७ उ. ७ अकाम वेदना का वेदन . .
२१ प्रश्न-हे भगवन ! केवलज्ञानी मनुष्य जो उसी भव में सिद्ध होने वाला है यावत् सभी दुःखों का अन्त करने वाला है। क्या वह और भोगने योग्य विपुल भोगों को भोगने में समर्थ है ?
२१ उत्तर-हे गौतम ! इसका कथन परमावधिज्ञानी की तरह करना चाहिये । यावत् वह महापर्यवसान वाला होता है।
विवेचन-नियत क्षेत्र विषयक अवधिज्ञान बाला 'आधोवधिकज्ञानी' कहलाता है। उत्कृष्ट अवधिज्ञान वाला परमाधोऽवधिकज्ञानी कहलाता है। यह चरमशरीरी होता है। केवलज्ञान वाला केवलज्ञानी कहलाता है, वह तो चरमशरीरी है ही। इन तीनों के भोग भोंगने सम्बन्धी वक्तव्यता, छग्रस्थ की तरह कहनी चाहिये ।
अकाम वेदना का वेदन
२२ प्रश्न-जे इमे भंते ! असण्णिणो पाणा, तं जहा-पुढवि. क्काइआ जाव वणस्सइकाइआ, उट्ठा य एगइया तसा; एए णं अंधा, मूढा, तमं पविट्ठा, तमपडल-मोहजालपडिच्छण्णा अकामणिकरणं वेयणं वेदेंतीति वत्तव्यं सिया ? . २२ उत्तर-हंता, गोयमा ! जे इमे असण्णिणो पाणा, जाव पुढविकाइआ जाव वणस्सइकाइआ छट्टा य जाव वेयणं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया। __२३ प्रश्न-अस्थि णं भंते ! पभू वि अकामणिकरणं वेयणं वेदेति ?
२३ उत्तर-हंता, गोयमा ! अस्थि ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org