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________________ भगवती सूत्र-श. ७ उ. ७ छद्मस्थ और केवली ११७७ देवलोएसु०? १९ उत्तर-एवं चेव, जहा छउमत्थे जाव महापजवसाणे भवइ । २० प्रश्न-परमाहोहिए णं भंते ! मणुस्से जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झित्तए, जाव अंतं करेत्तए, से गूणं भंते ! से खीणभोगी? २० उत्तर-सेसं जहा छउमत्थस्स । २१ प्रश्न-केवली णं भंते ! मणूसे जे भविए तेणेव भवग्गहणेणं? ___२१ उत्तर-एवं जहा परमाहोहिए, जाव महापज्जवसाणे भवइ। कठिन शब्दार्थ-आहोहिए-अधोऽवधिक अर्थात् नियत क्षेत्र के अवधिज्ञान वाला, परमाहोहिए--परमाऽवधिक अर्थात् परम अवधिज्ञानी। .१९ प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा अधोऽवधिक (नियतक्षेत्र के अवधिज्ञान वाला) मनुष्य जो किसी देवलोक में उत्पन्न होने योग्य है, वह क्षीण-भोगी (दुर्बल शरीरवाला) उत्थान, यावत् पुरुषकारपराक्रम द्वारा विपुल भोगने योग्य भोगों को भोगने में समर्थ है ? ... १९ उत्तर-हे गौतम ! इसका कथन भी उपर्युक्त छदमस्थ के समान ही जान लेना चाहिये, यावत् वह महापर्यवसान वाला होता है। ___भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! ऐसा परमावधिक मनुष्य जो उसी भव में सिद्ध होने वाला है यावत् सर्व दुःखों का अन्त करने वाला है, क्या वह क्षीण भोगी यावत् भोगने योग्य विपुल भोगों को भोगने में समर्थ है ? २० उत्तर-हे गौतम ! इसका उत्तर छमस्य के लिये दिये हुए उत्तर के समान जानना चाहिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004088
Book TitleBhagvati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages506
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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