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११६६.
भगवभी सूत्र-श. ७ उ. ६ छठे आरे के मनुष्यों का स्वरूप
वजिहिति ।
२२ प्रश्न ते णं भंते ! सीहा, वग्धा, वगा, दीविया, अच्छा, तरच्छा, परस्सरा, णिस्सीला तहेव जाव कहिं उववजिहिंति ? ___२२ उत्तर-गोयमा ! ओसण्णं णरग-तिरिक्खजोणिएसु उववजिहिति ।। ___२३ प्रश्न ते णं भंते ! ढंका, कंका, विलका, मदुगा, सिही, णिस्सीला, तहेव जाव ओसण्णं णरग-तिरिक्खजोणिएसु उववजिहिंति।
* सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति®
॥ सत्तमस्स सयस्स छटो उद्देसओ समत्तो ॥ कठिन शब्दार्थ-अक्खसोयप्पमाणमेत्तं-रथ की धुरी रहने के छिद्र जितने प्रमाण में, वोज्झिहिति-बहेंगा, निद्धाहिति-निकलेंगे, जिम्मेरा–कुलादि की मर्यादा से हीन, खोद्दाहारा क्षुद्र आहार वाले, कुणिमाहारा-मृतक का मांस खाने वाले, परस्सराशरभ, मदुगा-जलकाक (जलकोए) ।
भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! वे मनुष्य किस प्रकार का आहार करेंगे?
२० उत्तर-हे गौतम ! उस काल उस समय में गंगा और सिन्धु महानदियां, रथ-मार्ग प्रमाण विस्तृत होगी। उनमें अक्ष-प्रमाण (धुरी के छिद्र में प्रवेश करे उतना) पानी बहेगा । उस जल में अनेक मच्छ और कच्छप होंगे। पानी अति अल्प होगा। वे बिलवासी मनुष्य सूर्योदय के समय एक मुहर्त और सूर्यास्त के समय एक मुहूर्त अपने अपने बिलों से बाहर निकलेंगे और गंगा सिन्धु महानदियों में से मछलियां और कच्छपादि को पकड़ कर रेत में गाड़ देंगे। वे रात को ठण्ड से और दिन की गर्मी से सिक जायेंगे । इस प्रकार शाम को गाडे
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