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भगवती सूत्र - श. ७ उ ६ छठे आरे के मनुष्यों का स्वरूप
हुए मच्छादि को सुबह निकाल कर खायेंगे और सुबह के गाडे हुए मच्छादि को शाम को निकाल कर खायेंगे। इस प्रकार वे इक्कीस हजार वर्ष तक अपनी आजीविका चलावेंगे ।
२१ प्रश्न - हे भगवन् ! शील रहित, निर्गुण, मर्यादा रहित, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास रहित, प्रायः मांसाहारी, मत्स्याहारी, क्षुद्राहारी, मृतकाहारी वे मनुष्य, मरण समय काल करके कहाँ जायेंगे ? कहाँ उत्पन्न होंगे ?
२१ उत्तर - हे गौतम ! वे मनुष्य प्रायः नरक और तिर्यञ्च में जायेंगे, नरक तिर्यञ्च गति में उत्पन्न होंगे।
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२२ प्रश्न - हे भगवन् ! उस काल और उस समय के सिंह, व्याघ, वृक (भेड़िया, ) द्वीपो ( गेण्डा) रीछ, तरक्ष (जरख), शरभ आदि जो कि पूर्वोक्त रूप से निःशील आदि होंगे, वे मर कर कहाँ जायेंगे ? कहाँ उत्पन्न होंगे ?
२२ उत्तर - हे गौतम! वे प्रायः नरक और तिर्यञ्च योनि में उत्पन्न होंगे । २३ प्रश्न - हे भगवन् ! उस काल और उस समय के ढंक (एक प्रकार के कौए) कंक, बीलक, जलवायस ( जल काक) मयूर आदि निःशील आदि होंगे, वे मर कर कहाँ उत्पन्न होंगे ?
पक्षी जो पूर्ववत्
२३ उत्तर - हे गौतम ! वे प्रायः नरक और तिर्यञ्च योनि में उत्पन्न होंगे। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-दुषमदुषमा नामक छठे आरे के मनुष्य कैसे होंगे, वे किस प्रकार का आहार करेंगे, इत्यादि बातों का वर्णन ऊपर किया गया है। उस समय के मनुष्य प्रायः धर्म और सम्यक्त्व से रहित होंगे। अत्यन्त पापी और अधर्मिष्ठ होंगे । अतएव वे मरकर प्रायः नरक और तिर्यञ्च गति में उत्पन्न होंगे ।
इसी प्रकार उस समय के सिंह व्याघ्रादि जानवर और ढंक कंकादि पक्षी भी मरकर प्रायः नरक और तिर्यञ्च गति में उत्पन्न होंगे ।
॥ इति सातवें शतक का छठा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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