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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ सनत्कुमारेन्द्र की. भवसिद्धिकता
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सिद्धिक है यावत् चरम है, किन्तु अचरम नहीं है।
३५ प्रश्न-हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार की स्थिति कितने काल की कही गई है ? ____३५ उत्तर-हे गौतम ! सनत्कुमार देवेन्द्र की स्थिति सात सागरोपम को कही गई हैं।
३६ प्रश्न-हे भगवन् ! सनत्कुमार देवेन्द्र को. आयु पूर्ण होने पर वह वहाँ से चव कर यावत् कहाँ उत्पन्न होगा?
३६ उत्तर-हे गौतम ! सनत्कुमार वहाँ से चव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों का अन्त करेगा।
सेवं भंते ! सेवं भंते !! हे. भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
दो गाथाओं का अर्थ इस प्रकार है-तिष्यक श्रमण का तप. छठ छठ (निरन्तर बेला बेला) था और एक मास का अनशन था। कुरुदत्तपुत्र श्रमण का तप अट्टम अट्टम (निरन्तर तेला तेला) था और अर्द्धमास (पन्द्रह दिन) का अनशन था। तिष्यक श्रमण की दीक्षापर्याय आठ वर्ष की और कुरुदत्त पुत्र की दीक्षापर्याय छह मास की थी। यह विषय इस उद्देशक में आया है। इसके अतिरिक्त दूसरे विषय भी आये हैं। वे इस प्रकार हैं-विमानों की ऊँचाई, एक इन्द्र का दूसरे इन्द्र के पास आना, उन्हें देखना, परस्पर आलाप संलाप (बातचीत) करना, उनका कार्य, विवाद की उत्पत्ति, उसका निपटारा, सनत्कुमार का भवसिद्धिकपन, इत्यादि विषयों का वर्णन इस उद्देशक में किया गया है।
॥ मोका+ समाप्त ॥ विवेचन-शकेन्द्र के विमानों से ईशानेन्द्र के विमान कुछ उच्चतर और उन्नततर
+ इस उद्देशक में बतलाये गये प्रारंभिक विषयों का वर्णन भगवान् ने 'मोका' नगरी में किया था। इसलिए इस उद्देशक का नाम 'मोआ उद्देसो'-मोका उद्देशक रखा गया है।
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