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भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ असुरों द्वारा क्षमा याचना
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से असुरकुमार देव और देवियां आप देवानुप्रिय को काल धर्म प्राप्त हुए एवं ईशान कल्प में इन्द्र रूप से उत्पन्न हुए देखकर बहुत कुपित हुए हैं, यावत् आपके मत शरीर को अपनी इच्छानुसार आडाटेढ़ा घसीट कर एकांत में डाल दिया है । और वे जिस दिशा से आये उसी दिशा में वापिस चले गये हैं। जब देवेन्द्र देवराज ईशान ने ईशान कल्प में रहने वाले बहुत से वैमानिक देव और देवियों से इस बात को सुना तब वह बड़ा कुपित हुआ और क्रोध से मिसमिसाट करता हुआ देवशय्या में रहा हुआ ही वह ईशानेन्द्र, ललाट में तीन सल डालकर एवं भृकुटी चढ़ाकर बलिचंचा राजधानी की ओर एकटक दृष्टि से देखने लगा। इस प्रकार क्रोध से देखने पर उसके दिव्यप्रभा से बलिचंचा राजधानी अंगार, अग्नि के कण, राख एवं तपे हुए कवेलू के समान अत्यन्त तप्त हो गई।
. असुरों द्वारा क्षमा याचना तएणं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तं बलिचंचारायहाणिं इंगालब्भूयं, जाव-समजोइ
भूयं पासंति, पासित्ता भीया, *तत्था, तसिया, उव्विग्गा, संजायभया, सव्वओ समंता आधाति, परिधावेंति, अण्णमण्णस्स कार्य समतुरंगेमाणा चिटुंति, तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य ईसाणं देविदं देवरायं परिकुब्वियं जाणित्ता ईसाणस्स देविंदस्स, देवरण्णो तं दिव्यं देविड्ढेि, दिव्वं देवज्जुई, दिव्वं देवाणुभागं, दिव्वं तेयलेस्सं असहमाणा सव्वे सपक्खि सपडिदिसं ठिच्चा करयलपरिग्गहियं दसणहं
* टीका में ये शब्द 'उत्तत्था' और 'मुसिआ' लिखे हैं । पं. बेचरदासजी ने मल में ये ही शब्द
दिये हैं-डोशी
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