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________________ ५९२ भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ असुरों द्वारा क्षमा याचना सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धाविति, एवं वयासी-अहो ! णं देवाणुप्पिएहिं दिव्वा देविड्ढी, जाव-अभिसमण्णा. गया, तं दिव्वा णं देवाणुप्पियाणं दिव्वा देविड्ढी, जाव-लद्धा, पत्ता, अभिसमण्णागया, तं खामेमोणं देवाणुप्पिया! खमंतु णं देवाणुप्पिया ! खमंतुमरिहंतु णं देवाणुप्पिया ! णाई भुज्जो भुज्जो एवं करणयाए णं तिकटु एयमटुं सम्मं विणएणं भुज्जो भुज्जो खाति, तएणं से ईसाणे देविंदे देवराया तेहिं बलिचंचारायहाणिवत्थव्वेहि बहूहि असुरकुमारेहि देवेहिं देवीहि य एयमटुं सम्मं विणएणं भुज्जो भुज्जो खामिए समाणे तं दिव्वं देविइिंढ, जाव तेयलेस्सं पडिसाहरइ, तप्पभिई च णं गोयमा ! ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य ईसाणं देविंदं देवरायं आढ़ति, जाव-पज्जुवासंति, ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो आणा-उववायवयण-णिद्देसे चिटुंति, एवं खलु गोयमा ! ईसाणेणं देविंदेणं, देवरण्णा सा दिव्या देविड्ढी जाव-अभिसमण्णागया। कठिन शब्दार्थ-भीया-डरे, तत्या-त्रास पाये, तसिया-शुष्क हो गए, उम्विग्गा-उद्विग्न हुए, संजायभया-भय से व्याप्त, सम्वओसमंता-सभी ओर, आधाति परिधावेंति-दौड़ने और भागने लगे, अन्नमन्नस्स-अन्योन्य-एक दूसरे को, समतुरंगेमाणा-आलिंगन करने लगे-सोड़ में घुसने लगे, परिकुम्वियं-कोपायमान, असहमाणा-सहन नहीं करते हुए, खमंतुमरिहंतु क्षमा करने योग्य, भुज्जो भुज्जो-बारबार, पडिसाहरई-वापिस खींची, तप्पभिई-तभी से, आणा-उववाय-वयण-णिद्देसे-आज्ञा, सेवा, आदेश और निर्देश में। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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