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________________ ५९० भगवती सूत्र-श. ३ उ. १ ईशानेन्द्र का कोप तामेव दिसिं पडिगया, तएणं से ईसाणे देविंदे देवराया तेसिं ईसाणकप्पवासीणं बहूणं वेमाणियाणं देवाण य, देवीण य अंतिए एयमटुं सोच्चा, णिसम्म आसुरुत्ते, जाव-मिसिमिसेमाणे तत्थेव सयणिजवरगये तिवलियं भिउडि पिडाले साहट्टु बलिचंचारायहाणिं अहे, सपक्खि, सपडिदिसिं समभिलोएइ । तएणं सा बलिचंचा रायहाणी ईसाणेणं देविदेणं देवरण्णा अहे, सपक्खि, सपडिदिसिं समभिलोइआ समाणी तेणं दिव्वपभावेणं इंगालब्भूया, मुम्मुर भूया, छारियभूया, तत्तकवेलगभूया, तत्ता समजोइन्भूया जाया या वि होत्था । . कठिन शब्दार्थ-सयणिज्जवरगये-शय्या में रहा हुआ, तिवलियं भिड निडाले साहटु-ललाट पर-तीन रेखाएँ बनजाय ऐसी भृकुटी चढ़ाई, इंगालन्भूया-अंगारे जैसी, मुमुरब्भूया-आग के कण जैसी, छारियम्भूया-राख जैसी, तत्तकवेलगभूया-तपे हुए खपरैल जैसी, तत्तासमजोईयब्भूया-तपी हुई ज्योति के समान । भावार्थ-इसके पश्चात् ईशान देवलोक में रहने वाले बहुत से वैमानिक देव और देवियों ने इस प्रकार देखा कि बलिचञ्चा राजधानी में रहने वाले बहुत से असुरकुमार देव और देवियाँ तामली बालतपस्वी के मृत शरीर की होलना, निन्दा, खिसनादि कर रहे हैं और यावत् उस मृतकलेवर को अपनी इच्छानुसार आहाटेढ़ा घसीट रहे हैं। __ इस प्रकार देखने से उन देव और देवियों को बड़ा क्रोध आया । क्रोध से मिसमिसाट करते हुए वे देवेन्द्र देवराज ईशान के पास आकर दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर अञ्जाल करके इन्द्र को जय विजय शब्दों से बधाया, फिर वे इस प्रकार बोले-“हे देवानुप्रिय ! बलिचञ्चा राजधानी में रहने वाले बहुत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004087
Book TitleBhagvati Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages560
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size10 MB
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